हैदराबाद। तेलंगाना हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला को ‘खुला’ के जरिए तलाक लेने का पूर्ण और बिना शर्त अधिकार है, और इसके लिए पति की सहमति जरूरी नहीं है। यह फैसला मंगलवार, 24 जून 2025 को जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य और बी.आर. माधुसूदन राव की खंडपीठ ने सुनाया।
‘खुला’ इस्लामिक कानून के तहत तलाक का एक तरीका है, जिसमें महिला अपने मेहर (दहेज) के अधिकार को छोड़कर विवाह विच्छेद की पहल करती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि खुला एक गैर-विवादास्पद और बिना कारण बताए तलाक का रूप है, जो तुरंत प्रभावी हो जाता है। पति केवल मेहर की वापसी पर बातचीत कर सकता है, लेकिन तलाक को रोक नहीं सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी मुफ्ती या धार्मिक संस्था से ‘खुलनामा’ प्रमाणपत्र लेना जरूरी नहीं है, क्योंकि ये केवल सलाहकारी हैं, कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं।
मामला मोहम्मद आरिफ अली की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया
यह मामला मोहम्मद आरिफ अली की याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया, जिन्होंने अपनी पत्नी द्वारा ‘आदा-ए-हक शरई काउंसिल’ से लिए गए खुला प्रमाणपत्र को चुनौती दी थी। पत्नी ने घरेलू हिंसा का आरोप लगाया और तलाक मांगा, लेकिन पति ने सहमति देने से इनकार कर दिया। फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका खारिज कर दी थी, जिसे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा।
इस्लामिक कानून में पति की सहमति अनिवार्य नहीं
कोर्ट ने कुरान की आयतों (अध्याय 2, आयत 228-229) का हवाला देते हुए कहा कि इस्लामिक कानून में पति की सहमति अनिवार्य नहीं है। इस फैसले को मुस्लिम महिलाओं की स्वायत्तता को मजबूत करने वाला माना जा रहा है। वकील मुबाशेर हुसैन अंसारी ने कहा कि अब खुला मामलों में लंबी सुनवाई की जरूरत नहीं, जिससे तेलंगाना में हजारों लंबित मामले जल्द सुलझ सकते हैं। यह फैसला महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और सामाजिक बदलाव को बढ़ावा दे सकता है।