पवन चोपड़ा, चंडीगढ़। गृह विज्ञान के पाठ्यक्रम ने 20वीं शताब्दी की शुरुआत से ही अपने पाठ्यक्रम में सतत प्रथाओं को शामिल किया है। जबकि सतत विकास 21वीं सदी में एक चर्चा का विषय बना। अब समय आ गया है कि भारत की घरेलू स्तर पर प्रयोग में आने वाली टेक्नोलॉजी ये विश्व भी स्वीकार करे और समझे। उक्त उद्बोधन वनस्थली विद्यापीठ के गृह विज्ञान संकाय द्वारा आयोजित सतत विकास: वैश्विक समस्याएं, स्थानीय समाधान पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का ये निष्कर्ष था।
संगोष्ठी का उद्घाटन मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर की कुलपति प्रो. सुनीता मिश्रा ने किया। अपने मुख्य भाषण में प्रो. सुनीता मिश्रा ने नए युग के गृह विज्ञान की ओर ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की, जो अत्यधिक उन्नत है और केवल गृह निर्माण कौशल प्रदान करने से कहीं अधिक है। उन्होंने कहा कि गृह विज्ञान पाठ्यक्रम में प्रौद्योगिकी को शामिल करने से सतत विकास में इसकी भूमिका और बढ़ गई है। स्वागत भाषण डीन प्रो. सुमन पंत ने दिया और धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष प्रो. चंद्रा कुमारी ने किया। सेमिनार की संयोजकों में से एक प्रो. मोनिका जैन ने उद्घाटन समारोह में मंच संचालन किया।
विशेष व्याख्यान सत्र में एम्स, दिल्ली के मानव पोषण इकाई के सेवानिवृत्त प्रोफेसर और एनएएमएस के सचिव डॉ. उमेश कपिल ने लौह की कमी और एनीमिया की अत्यधिक प्रचलित वैश्विक समस्या के लिए सतत चिकित्सीय उपायों की आवश्यकता पर बल दिया और कुछ भारतीय सफलता की कहानियों का उल्लेख किया। एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय की प्रो. सुजाता भान का दृष्टिकोण था कि समावेशी शिक्षा एक समतापूर्ण, न्यायसंगत और टिकाऊ भविष्य की कुंजी है। वस्त्र विशेषज्ञ डॉ. मीनाक्षी जैन ने सभी से वार्डरोब ऑडिट करने और वस्त्र खरीदते समय अपरिग्रह के भारतीय दर्शन का अभ्यास करने की अपील की ताकि कार्बन फुटप्रिंट कम किया जा सके।
स्वयं सहायता समूहों के बारे में दुनिया को पता हो: तरुणा साह
दो दिनों में हुए आठ तकनीकी सत्रों में दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. सरिता आनंद ने पैकेजिंग कचरे के संबंध में एक परिपत्र अर्थव्यवस्था की अवधारणा पर जोर दिया, जिसमें बताया गया कि हालांकि निर्माता इसके महत्व के बारे में जानते हैं, लेकिन उपभोक्ता की भागीदारी कम है, जिससे रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देने के लिए सहयोगी प्रयासों की आवश्यकता है। बीएचयू की प्रो. गरिमा उपाध्याय ने उत्सर्जन को कम करने और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को समर्थन देने में छोटे और क्षेत्रीय खाद्य प्रणालियों के महत्व पर प्रकाश डाला। सुश्री तरुणा साह, जो एक मानव विकास विशेषज्ञ हैं और अपना स्वयं का एनजीओ चलाती हैं, ने कहा कि भारत को स्थायी आय और कौशल विकास के लिए स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की सफलता की कहानियां और महत्व दुनिया को बताना चाहिए।
दुनिया को गृह विज्ञान शिक्षा के महत्व का एहसास हो: डॉ. निकी डबास
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. निकी डबास ने विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा किए गए सतत प्रयासों और आर्थिक स्वतंत्रता के महत्व पर बल दिया। डॉ. डबास ने व्यक्तिगत स्वास्थ्य और संसाधन प्रबंधन की वकालत की। पैनल चर्चा में, विशेषज्ञों की राय थी कि दुनिया को गृह विज्ञान शिक्षा के महत्व का एहसास कराना चाहिए और बताना चाहिए कि यह कैसे विद्यार्थियों को प्रदान किए जाने वाले सभी कौशलों में री यूज़, रिड्यूस, रीसायकल के सिद्धांत को एकीकृत करता है।
प्रो. अंशुमान शास्त्री, निदेशक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सेंटर, वनस्थली विद्यापीठ ने सुझाव दिया कि गृह विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का एकीकरण कैसे विषय को नव स्वरूप देने और सतत विकास में इसके अनुप्रयोग को बढ़ाने में मदद कर सकता है। अटल इनक्यूबेशन सेंटर के सीईओ डॉ. अभिषेक पारीक ने कुछ महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप की सफलता का उल्लेख किया, जिन्होंने कृषि, महिला स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्र से संबंधित समस्याओं के अभिनव समाधान प्रदान करने के लिए स्वदेशी तकनीकों का उपयोग किया।
सेमिनार में 54 विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधियों ने लिया हिस्सा
इस संगोष्ठी को आईसीएसएसआर ने स्पांसर किया था। सेमिनार में 54 विभिन्न विश्वविद्यालयों और संस्थानों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों तरीकों से 111 पेपर और पोस्टर प्रस्तुतियां दी गईं। समापन समरोह में वनस्थली विद्यापीठ के अध्यक्ष प्रो. सिद्धार्थ शास्त्री ने सेमिनार के विषय की सराहना की और इस बात पर जोर दिया कि सतत विकास व्यक्तिगत स्तर से शुरू होता है। मुख्य अतिथि श्री माता वैष्णो देवी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. प्रगति कुमार ने सौर एवं पवन ऊर्जा के क्षेत्रों में भारत की उल्लेखनीय उपलब्धियों को बताया। डॉ. चंद्रा कुमारी ने सेमिनार की रिपोर्ट प्रस्तुत की और प्रो. मोनिका जैन ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
इस संगोष्ठी के समन्वयक प्रो सुमन पंत, प्रो शील शर्मा, प्रो. चंद्रा कुमारी और प्रो. मोनिका जैन थे। संगोष्ठी आयोजन दल के सदस्य डॉ एकता सिंह, डॉ गीता बीसला, डॉ नविता पारीक, डॉ नीलम चतुर्वेदी, डॉ पारुल शर्मा, डॉ पारुल त्रिपाठी, सुश्री श्वेता पांडे, डॉ सुविधा, सुश्री वैशाली भृगु, डॉ शालिनी जुनेजा और डॉ नम्रता अरोरा थे।