नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने बुधवार, 30 अप्रैल 2025 को एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित गणना को शामिल करने की घोषणा की। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने नई दिल्ली में कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स (सीसीपीए) की बैठक के बाद यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि यह निर्णय सामाजिक और आर्थिक संरचना को मजबूत करेगा और पारदर्शी तरीके से लागू किया जाएगा। यह कदम 1931 के बाद पहली बार राष्ट्रीय जनगणना में व्यापक जाति डेटा शामिल करने का प्रयास है।
वैष्णव ने कांग्रेस और इंडिया गठबंधन पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने हमेशा जाति जनगणना का विरोध किया और इसे राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लोकसभा में जाति जनगणना पर विचार करने का आश्वासन दिया था, लेकिन कांग्रेस सरकार ने केवल सर्वे किया, न कि पूर्ण जनगणना। उन्होंने यह भी बताया कि कुछ राज्यों, जैसे बिहार और कर्नाटक, ने अपनी जाति सर्वेक्षण किए, लेकिन इनकी पारदर्शिता पर सवाल उठे।
सामाजिक समानता की दिशा में एक मजबूत कदम
यह निर्णय बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जहां जाति आधारित राजनीति अहम भूमिका निभाती है। कांग्रेस और विपक्षी दलों ने लंबे समय से जाति जनगणना की मांग की थी, ताकि आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं का समान वितरण सुनिश्चित हो। गृह मंत्री अमित शाह ने इसे सामाजिक समानता की दिशा में एक मजबूत कदम बताया।
नीति निर्माण के लिए सटीक डेटा प्रदान करना जरूरी
वैष्णव ने कहा कि केंद्र सरकार का यह कदम सामाजिक ताने-बाने को राजनीति से बचाने और नीति निर्माण के लिए सटीक डेटा प्रदान करने के लिए है। जनगणना, जो कोविड-19 के कारण 2020 से स्थगित थी, अब 2026 में होने की उम्मीद है। यह निर्णय सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।