नई दिल्ली। केंद्र सरकार जनगणना में जाति कॉलम जोड़ने पर विचार कर रही है। सरकारी सूत्रों से यह खबर सामने आ रही है। बता दें कोविड-19 के प्रकोप के कारण जनगणना में देरी हुई है। देश में 1881 से हर दस साल में जनगणना होती रही है। इस वजह से सभी राजनीतिक दल जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं।
अगस्त में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा, “मोदीजी, अगर आप जाति जनगणना को रोकने के बारे में सोच रहे हैं, तो आप सपना देख रहे हैं। कोई ताकत नहीं रोक सकती अब भारत का आदेश आ गया है- जल्द ही 90 प्रतिशत भारतीय इस आदेश को लागू करने का समर्थन करेंगे और मांग करेंगे। अन्यथा आप अगले प्रधानमंत्री को ऐसा करते हुए देखेंगे।”
एलजेपी और जेडीयू इसकी मांग उठाती रही
सिर्फ विपक्ष ही नहीं, बीजेपी के कुछ सहयोगी दल, जैसे सांसद चिराग पासवान की एलजेपी और बिहार में नीतीश कुमार की जेडीयू भी देशव्यापी जाति जनगणना की वकालत कर रहे हैं।
बिहार में सत्तारूढ़ पार्टी नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) द्वारा राज्यव्यापी जाति सर्वेक्षण के नतीजे जारी करने के बाद राष्ट्रीय जाति जनगणना की मांग उठी। पिछले साल अक्टूबर में जारी सर्वेक्षण से पता चला कि राज्य की 80 प्रतिशत से अधिक आबादी अत्यंत पिछड़े वर्ग की है।
हमारी पार्टी जातिगत जनगणना के पक्ष में: पासवान
इससे पहले, सरकारी नौकरियों में लेटरल एंट्री पर नियुक्ति पर हंगामा मचने के बाद, पासवान ने स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी हमेशा जाति जनगणना के पक्ष में रही है।
पिछले साल संसद द्वारा पारित महिला आरक्षण अधिनियम का कार्यान्वयन भी दस साल की जनगणना के पूरा होने से जुड़ा है। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिला उम्मीदवारों के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का अधिनियम जनगणना के आंकड़े आने के बाद परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होने के बाद प्रभावी होने की संभावना है।