नई दिल्ली। छठ पूजा आज से पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ शुरू हो रही है। यह पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में अत्यधिक लोकप्रिय है। यह चार दिनों का त्योहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामुदायिक एकता और समर्पण का भी उत्सव है। छठ पूजा में सूर्य देवता, जो स्वास्थ्य, समृद्धि और जीवन ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं और छठी मइया की पूजा की जाती है।
नहाय-खाय
पहला दिन, जिसे नहाय-खाय कहा जाता है, व्रती सुबह-सुबह गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करके शुद्धता का संकल्प लेती हैं। इस दिन व्रती सादे और सात्विक भोजन का सेवन करते हैं, जिससे उनके शरीर और मन दोनों शुद्ध हो सके। यह पूजा शुद्धता और पवित्रता के उच्चतम मानकों का पालन करती है।
खरना
दूसरा दिन खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए उपवास रखती हैं और शाम को गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का प्रसाद तैयार करते हैं। यह प्रसाद छठ मइया को अर्पित किया जाता है और इसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करती हैं। खरना के प्रसाद का विशेष महत्व होता है और इसे अत्यंत श्रद्धा से बनाया और बांटा जाता है।
संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन को संध्या अर्घ्य कहा जाता है। इस दिन व्रती डूबते सूर्य को जलाशय के किनारे खड़े होकर अर्घ्य देते हैं। इस समय, घाटों पर भक्तों की भीड़ एक अविस्मरणीय दृश्य प्रस्तुत करती है। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में होती हैं और पूरी प्रक्रिया भक्ति गीतों और छठ पूजा के लोक गीतों से गूंजती रहती है। संध्या अर्घ्य देने का यह चरण मुख्य रूप से सूर्य देव के प्रति आभार प्रकट करने के लिए होता है, जिन्होंने पूरे दिन की रोशनी और ऊर्जा दी।
उषा अर्घ्य
चौथा और अंतिम दिन उषा अर्घ्य के साथ पूरा होता है, जब व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देकर अपने व्रत का समापन करते हैं। इस पूजा के दौरान, भक्त जलाशयों में खड़े होकर उगते सूर्य का स्वागत करते हैं और अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। इसके बाद, व्रती अपने परिवार और अन्य लोगों के बीच प्रसाद का वितरण करते हैं और पूजा का समापन करते हैं।
छठ पूजा की विशेषता
छठ पूजा की विशेषता यह है कि इसमें भव्य पूजा स्थलों या धार्मिक आडंबर की आवश्यकता नहीं होती। लोग घरों के बाहर या नदियों के किनारे प्राकृतिक रूप से पूजा करते हैं। इस पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू भक्तों की श्रद्धा और संकल्प है, जो चार दिनों के कठोर व्रत में दिखाई देता है। इस पर्व में महिलाएं और पुरुष समान रूप से भाग लेते हैं और यह एकता, पारिवारिक प्रेम और समर्पण का प्रतीक है।