नई दिल्ली। कांग्रेस ने हाल ही में गुजरात में अपनी राजनीतिक जमीन को पुनः प्राप्त करने की कोशिश शुरू की है। इसके लिए उसने सरदार वल्लभभाई पटेल की विरासत को फिर से अपने पक्ष में करने की रणनीति अपनाई है। 8 अप्रैल 2025 को अहमदाबाद में आयोजित विस्तारित कांग्रेस कार्य समिति (CWC) की बैठक और 85वें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) सत्र में इस दिशा में कदम उठाए गए।
पार्टी ने सरदार पटेल मेमोरियल में CWC की बैठक आयोजित की और गांधी आश्रम के पास साबरमती नदी के किनारे AICC सत्र का आयोजन किया। इस प्रतीकात्मक कदम के जरिए कांग्रेस ने पटेल और गांधी की विरासत को अपने पक्ष में करने की कोशिश की। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बैठक में बीजेपी और आरएसएस पर पटेल की विरासत को “हड़पने” का आरोप लगाया।
कांग्रेस ‘नफरत छोड़ो-भारत जोड़ो’ जैसे अभियानों को आगे बढ़ाएगी
उन्होंने कहा कि बीजेपी ने पटेल और नेहरू के बीच मतभेदों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया, जबकि दोनों नेता स्वतंत्रता संग्राम में एक-दूसरे के पूरक थे। कांग्रेस ने अपने प्रस्ताव ‘स्वतंत्रता संग्राम के ध्वजवाहक – हमारे सरदार वल्लभभाई पटेल’ में कहा कि वह पटेल के विचारों को अपनाकर किसानों के अधिकारों और ‘नफरत छोड़ो-भारत जोड़ो’ जैसे अभियानों को आगे बढ़ाएगी। यह कदम गुजरात में 2027 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है। बीजेपी ने इस कदम को “बहुत देर” करार दिया।
कांग्रेस ने पटेल को भारत रत्न तक नहीं दिया: अमित शाह
उसका दावा है कि उसने पटेल को सही सम्मान दिया, जैसे कि 2018 में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण और 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस की शुरुआत। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस ने पटेल को भारत रत्न तक नहीं दिया, जबकि बीजेपी ने उनकी विरासत को मजबूत किया। बीजेपी का कहना है कि उसने पटेल को राष्ट्रवादी छवि दी, जिसे कांग्रेस ने उपेक्षित रखा। कांग्रेस का यह प्रयास गुजरात में उसकी खोई हुई साख को वापस लाने की कोशिश है, जहां वह 1995 के बाद सत्ता में नहीं आई।
पाटीदार समुदाय 40-50 सीटों पर रखता है प्रभाव
पटेल की पाटीदार समुदाय से नाता होने के कारण यह समुदाय, जो 40-50 सीटों पर प्रभाव रखता है, कांग्रेस के लिए अहम है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि बीजेपी ने पटेल की छवि को पहले ही अपने पक्ष में कर लिया है, और कांग्रेस का यह प्रयास “असरदार” होने के बजाय “बहुत कम और बहुत देर” हो सकता है। आने वाले समय में यह स्पष्ट होगा कि क्या कांग्रेस इस प्रयोग से गुजरात में अपनी स्थिति मजबूत कर पाएगी।