नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने कहा है कि देश का संविधान सर्वोच्च है और कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका सहित लोकतंत्र के सभी अंग इसके तहत काम करते हैं। उन्होंने संसद को सर्वोच्च मानने की धारणा को खारिज करते हुए कहा कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन इसकी मूल संरचना को बदल नहीं सकती। यह बयान उन्होंने इटली में ‘भारतीय संविधान के 75 वर्ष’ विषय पर बोलते हुए दिया।
CJI गवई ने ‘बुलडोजर न्याय’ पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का जिक्र किया, जिसमें इसे असंवैधानिक और अमानवीय ठहराया गया। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका स्वयं जज, जूरी और जल्लाद की भूमिका नहीं निभा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2025 में बुलडोजर कार्रवाइयों को रोकते हुए कहा था कि किसी आरोपी या दोषी के घर को केवल अपराध के आधार पर ढहाना परिवार के लिए सामूहिक सजा है और यह आश्रय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने प्रभावित लोगों को सिर्फ एक रात का नोटिस या दीवार पर नोटिस चिपकाने जैसी प्रथाओं की भी निंदा की थी।
गवई ने 1973 के केसवानंद भारती मामले का हवाला दिया
गवई ने 1973 के केसवानंद भारती मामले का हवाला देते हुए कहा कि यह फैसला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत को स्थापित करता है, जिसने न्यायपालिका और संसद के बीच तनाव को संतुलित किया। उन्होंने जोर दिया कि संसद और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने सामाजिक-आर्थिक अधिकारों, जैसे शिक्षा और आजीविका, को मौलिक अधिकारों में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
CJI ने अपने पिता की विरासत का भी उल्लेख किया
CJI ने अपने पिता की विरासत का भी उल्लेख किया, जो एक वकील और सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने कहा कि संविधान की शक्ति ने ही उन्हें दलित समुदाय से देश के शीर्ष न्यायिक पद तक पहुंचाया। यह बयान सामाजिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह फैसला और बयान बुलडोजर कार्रवाइयों पर चल रही बहस को और गर्म कर सकते हैं, खासकर उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां ऐसी कार्रवाइयां चर्चा में रही हैं।