पहलगाम आतंकी हमले में असम के प्रोफेसर की आपबीती, कलमा पढ़कर बची जान

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकी हमले में असम विश्वविद्यालय के बंगाली विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य और उनके परिवार ने बाल-बाल अपनी जान बचाई। इस हमले में 26 लोग मारे गए, जिसमें 25 भारतीय और एक नेपाली नागरिक शामिल थे। लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली। भट्टाचार्य ने अपनी भयावह आपबीती साझा की, जिसमें उन्होंने बताया कि कलमा पढ़ने से उनकी और उनके परिवार की जान बची।

भट्टाचार्य अपनी पत्नी मधुमिता और दो बच्चों के साथ तीन दिन की छुट्टी पर कश्मीर आए थे। हमले के दिन वे बैसारन मीडो, जिसे ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ कहा जाता है, में थे। दोपहर करीब 2:30 बजे आतंकी, सेना की वर्दी और कुर्ता-पायजामा में, जंगल से निकले और पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। भट्टाचार्य ने बताया कि शुरू में उन्हें लगा कि यह वन विभाग की ओर से खाली फायरिंग है, लेकिन जब उनके बेटे ने दो लोगों को गोली लगते देखा, तो स्थिति स्पष्ट हुई।

सही कलमा पढ़ने पर आतंकी ने उन्हें छोड़ दिया

आतंकियों ने पर्यटकों को पेड़ के नीचे घुटनों पर बैठने को कहा। भट्टाचार्य ने सुना कि कुछ लोग डर से कलमा पढ़ रहे थे। उन्होंने भी सहज रूप से ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ पढ़ना शुरू किया। एक आतंकी ने उनसे पूछा कि वे क्या पढ़ रहे हैं और क्या वे ‘राम नाम’ ले रहे हैं। सही कलमा पढ़ने पर आतंकी ने उन्हें छोड़ दिया। भट्टाचार्य ने बताया कि उनकी मुस्लिम पड़ोसियों के साथ बचपन की यादों ने उन्हें कलमा याद रखने में मदद की।

असम सरकार ने भट्टाचार्य और उनके परिवार की सुरक्षित वापसी के लिए तत्काल व्यवस्था की। मुख्यमंत्री कार्यालय ने भारत सरकार के साथ समन्वय कर उन्हें श्रीनगर से सिलचर लाने की प्रक्रिया शुरू की। यह हमला कश्मीर में हाल के वर्षों में सबसे घातक हमलों में से एक था, जिसने पर्यटन और शांति की छवि को गहरा आघात पहुंचाया।

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