नई दिल्ली। भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगाए गए पारस्परिक टैरिफ के जवाब में सतर्कता और रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाया है। 3 अप्रैल, 2025 को प्रकाशित एक समाचार के अनुसार, वाणिज्य मंत्रालय ने पहली बार ट्रम्प के टैरिफ की घोषणा पर आधिकारिक प्रतिक्रिया दी। मंत्रालय ने कहा कि वह इन उपायों के प्रभावों का सावधानीपूर्वक अध्ययन कर रहा है और भारतीय उद्योगों व निर्यातकों सहित सभी हितधारकों से परामर्श कर रहा है। ट्रम्प ने भारत पर 27% टैरिफ लगाया है, जो अमेरिकी उत्पादों पर भारत द्वारा लगाए गए 52% टैरिफ का आधा है। यह टैरिफ 5 अप्रैल से 10% की आधार दर के साथ शुरू होगा, और 9 अप्रैल से अतिरिक्त 17% लागू होगा।
बहु-क्षेत्रीय द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) पर चर्चा
वाणिज्य मंत्रालय ने यह भी संकेत दिया कि भारत और अमेरिका के बीच एक पारस्परिक लाभकारी बहु-क्षेत्रीय द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) पर चर्चा चल रही है। इस समझौते में आपूर्ति श्रृंखला एकीकरण, निवेश वृद्धि और तकनीकी हस्तांतरण जैसे मुद्दे शामिल हैं। मंत्रालय का मानना है कि ट्रम्प की नीति से उत्पन्न होने वाली संभावित व्यापारिक अवसरों का लाभ उठाया जा सकता है। भारत ‘विकसित भारत’ के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए इस स्थिति का विश्लेषण कर रहा है।
‘इंडिया फर्स्ट’ की भावना के साथ संतुलित करने की कोशिश
ट्रम्प ने अपनी नीति को ‘अमेरिका फर्स्ट’ के तहत उचित ठहराया, लेकिन भारत ने इसे ‘इंडिया फर्स्ट’ की भावना के साथ संतुलित करने की कोशिश की है। वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा, “ट्रम्प के लिए अमेरिका पहले है, लेकिन मोदी के लिए भारत पहले है।” भारत सरकार इस टैरिफ के प्रभाव का आकलन कर रही है और इसका जवाब देने के लिए तैयार है। गुरुवार को प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक उच्च-स्तरीय बैठक बुलाई, जिसमें ट्रम्प के कार्यकारी आदेश की समीक्षा की गई।
दीर्घकालिक योजना से नुकसान को कम करने की उम्मीद
वैश्विक बाजारों में इस घोषणा से हलचल मची है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति वैश्विक व्यापार संतुलन को प्रभावित कर सकती है। भारत के लिए यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि अमेरिका उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। हालांकि, भारत अन्य विकसित देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में हो सकता है। सरकार ने संकेत दिया कि वह तुरंत जवाबी टैरिफ लगाने के बजाय बातचीत और रणनीति पर ध्यान देगी। यह कदम भारत के निर्यात-आधारित क्षेत्रों जैसे ऑटो, धातु और आईटी को प्रभावित कर सकता है, लेकिन दीर्घकालिक योजना से नुकसान को कम करने की उम्मीद है।