नई दिल्ली। दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित कांग्रेस के ‘भागीदारी न्याय सम्मेलन’ में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के हितों की रक्षा में अपनी कमी को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि 2004 से राजनीति में होने के बावजूद, उन्होंने ओबीसी समुदाय के मुद्दों को गहराई से नहीं समझा, जिसे उन्होंने अपनी निजी गलती माना, न कि कांग्रेस पार्टी की।
राहुल ने कहा, “मैंने ओबीसी के हितों की रक्षा उतनी नहीं की, जितनी करनी चाहिए थी। इसका कारण यह था कि मैं उस समय उनके मुद्दों और इतिहास को पूरी तरह नहीं समझ पाया।”
उन्होंने अफसोस जताया कि अगर उन्हें पहले ओबीसी समुदाय के इतिहास और समस्याओं की अधिक जानकारी होती, तो वे तत्काल जातिगत जनगणना करवाते। उन्होंने इस गलती को सुधारने की प्रतिबद्धता जताई और कहा कि अब कांग्रेस शासित राज्यों में जातिगत जनगणना कराई जाएगी।
जातिगत जनगणना को राजनीतिक भूकंप बताया
राहुल ने तेलंगाना में हुई जातिगत जनगणना को राजनीतिक भूकंप करार दिया, जिसका असर पूरे देश में दिखेगा। उन्होंने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर भी निशाना साधा और आरोप लगाया कि सरकार जानबूझकर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षित पदों को खाली रखकर दलित, आदिवासी और ओबीसी समुदायों को हाशिए पर रख रही है। उन्होंने दावा किया कि इन विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर के पदों में एसटी के लिए 83%, ओबीसी के लिए 80%, और एससी के लिए 64% पद खाली हैं।
पीएम की छवि को मीडिया ने बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया
राहुल ने प्रधानमंत्री मोदी को खोखला बताते हुए कहा कि उनकी छवि को मीडिया ने बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है। उन्होंने आरएसएस और बीजेपी पर भी ओबीसी इतिहास को मिटाने का आरोप लगाया। इस बयान पर बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने पलटवार किया, राहुल की टिप्पणियों को विभाजनकारी करार दिया।
राहुल गांधी के इस बयान को कांग्रेस की ओबीसी केंद्रित रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसके तहत पार्टी सामाजिक न्याय और जातिगत जनगणना के मुद्दे को मजबूती से उठा रही है।