नई दिल्ली। लोकपाल ने सेबी की पूर्व प्रमुख माधबी पुरी बुच को कथित हितों के टकराव के आरोपों से मुक्त कर दिया है। यह निर्णय 28 मई को लिया गया, जिसमें लोकपाल ने कहा कि उनके खिलाफ लगे आरोप असमर्थित और आधारहीन हैं।
यह मामला हिंदनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट से शुरू हुआ, जिसमें आरोप लगाया गया था कि माधबी और उनके पति धवल बुच ने अदानी समूह से जुड़े ऑफशोर फंड्स में निवेश किया था, जिससे सेबी की निष्पक्षता पर सवाल उठे। इसके अलावा, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा और अन्य शिकायतकर्ताओं ने माधबी पर भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग का आरोप लगाया था।
लोकपाल को नहीं मिला कोई ठोस सबूत
लोकपाल ने अपने आदेश में कहा कि शिकायतें मुख्य रूप से हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर आधारित थीं, जो अनुमानों और मान्यताओं पर टिकी थीं। जांच में पाया गया कि आरोपों में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 के तहत अपराध के कोई ठोस सबूत नहीं हैं। माधबी ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि उनके और उनके पति के निवेश सेबी में नियुक्ति से पहले किए गए थे और सभी आवश्यक खुलासे किए गए थे।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनके पति की सलाहकारी फर्म, अगोरा एडवाइजरी, ने महिंद्रा और पिडिलाइट जैसी कंपनियों के साथ काम किया, लेकिन ये अनुबंध पूरी तरह योग्यता पर आधारित थे और उनकी सेबी की भूमिका से पहले के थे।
फरवरी 2025 में तीन साल का कार्यकाल हुआ खत्म
माधबी की सेबी चेयरपर्सन के रूप में तीन साल की अवधि फरवरी 2025 में समाप्त हुई थी। उनके कार्यकाल के अंतिम चरण में, हिंदनबर्ग और कांग्रेस के आरोपों ने उनके नेतृत्व पर विवाद खड़ा किया। कांग्रेस ने दावा किया था कि माधबी ने सेबी में रहते हुए आईसीआईसीआई बैंक से 16.8 करोड़ रुपये की आय प्राप्त की, जिसे बैंक ने सेवानिवृत्ति लाभ के रूप में स्पष्ट किया। लोकपाल के इस फैसले से माधबी को राहत मिली है, लेकिन इस मामले ने नियामक निकायों में पारदर्शिता और जवाबदेही के मुद्दों पर बहस छेड़ दी है।