नई दिल्ली। असम कैबिनेट ने काजियों या मौलवियों को मुसलमानों के विवाह के पंजीकरण पर रोक लगाने वाले एक नए विधेयक को मंजूरी दे दी है। असम विवाह और तलाक का अनिवार्य पंजीकरण विधेयक भी बाल विवाह के पंजीकरण पर रोक लगाता है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ के कुछ प्रावधानों को निरस्त करने वाला विधेयक शुक्रवार को असम विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान पेश किया जाएगा। इसे समान नागरिक संहिता लाने की दिशा में असम के पहले कदम के रूप में देखा जा रहा है। नए कानून के अनुसार, मुस्लिम विवाह का पंजीकरण एक उप-पंजीयक द्वारा किया जाएगा।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हमने एक विधेयक पेश किया है जिसमें कहा गया है कि 18 साल से कम उम्र के व्यक्तियों की कोई भी शादी पंजीकृत नहीं की जाएगी। इसके अलावा, पंजीकरण का अधिकार काजी से उप-रजिस्ट्रार को स्थानांतरित कर दिया जाएगा।”
केवल सरकारी अधिकारी द्वारा पंजीकरण का प्रावधान
सरमा ने आगे कहा, “विभिन्न समुदायों में विवाह अनुष्ठानों के लिए विविध संस्कृतियां हैं। हमारे विधेयक की इसमें कोई भूमिका नहीं है। इसमें केवल एक सरकारी अधिकारी द्वारा विवाह पंजीकरण का प्रावधान किया गया है। बाकी सब वही रहेगा चाहे वह हिंदू विवाह के लिए हो या मुस्लिम विवाह के लिए।” मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले, क्रमशः 21 और 18 वर्ष से कम उम्र के मुस्लिम लड़के और लड़कियों के बीच विवाह पंजीकृत किया जा सकता था।
सरकार ने इसे पहले ही अध्यादेश के जरिए किया लागू
उन्होंने कहा, “नए कानून के तहत इस प्रथा पर रोक लगेगी। अब से कोई भी मुस्लिम नाबालिग लड़की राज्य में अपनी शादी का पंजीकरण नहीं करा सकेगी।” मुस्लिम विवाह और तलाक की प्रक्रियाओं की देखरेख काजी या मौलवी करते हैं। इस साल की शुरुआत में, सरकार ने एक अध्यादेश के माध्यम से असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 को निरस्त कर दिया था।
लव जिहाद पर कानून लाने का प्रस्ताव
पूरे असम में कई मुस्लिम संगठनों ने मुख्यमंत्री से काजी व्यवस्था को फिर से बहाल करने का अनुरोध किया है। सरमा ने यह भी कहा कि सरकार एक नया कानून लाएगी जो ‘लव जिहाद’ को अपराध बनाएगी और दोषी पाए जाने वालों को आजीवन कारावास की सजा देगी। ‘लव जिहाद’ शब्द मुस्लिम पुरुषों द्वारा प्यार के बहाने हिंदू लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराने के कथित प्रयासों को संदर्भित करता है।