नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर चिंता जताई है, जो विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले शुरू किया गया है। कोर्ट ने इस प्रक्रिया को रोकने से इनकार किया, लेकिन इसके समय और दस्तावेजों की मांग को लेकर सवाल उठाए।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि यह मामला लोकतंत्र के मूल में है, क्योंकि यह मतदान के अधिकार से जुड़ा है। कोर्ट ने चुनाव आयोग से आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड जैसे व्यापक रूप से उपलब्ध दस्तावेजों को सत्यापन के लिए स्वीकार करने पर विचार करने को कहा।
चुनाव आयोग ने 24 जून को पुनरीक्षण का दिया था आदेश
चुनाव आयोग ने 24 जून को बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण का आदेश दिया था, जिसमें करीब 7.9 करोड़ मतदाताओं की डोर-टू-डोर जांच शुरू की गई। आयोग का कहना है कि पिछले 20 वर्षों में बड़े पैमाने पर जोड़े गए और हटाए गए नामों के कारण डुप्लिकेट प्रविष्टियों का जोखिम बढ़ गया है।
हालांकि, विपक्षी दलों, जैसे कांग्रेस, आरजेडी और टीएमसी, ने इस प्रक्रिया को मनमाना और असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि अतिरिक्त दस्तावेजों की मांग से ग्रामीण क्षेत्रों, प्रवासी मजदूरों और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों जैसे कमजोर समूहों के मताधिकार छिन सकते हैं।
1 अगस्त को ड्राफ्ट मतदाता सूची की प्रक्रिया होगी पूरी
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और गोपाल शंकरनारायणन ने तर्क दिया कि नागरिकता सत्यापन का बोझ मतदाताओं पर डालना गलत है, क्योंकि यह काम गृह मंत्रालय का है। कोर्ट ने भी माना कि आधार को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता, लेकिन इसे पहचान के लिए स्वीकार किया जाना चाहिए।
इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी। विपक्ष ने मीडिया में भ्रामक खबरों की भी आलोचना की, जो यह दावा कर रही थीं कि कोर्ट ने पुनरीक्षण पर रोक लगाई। यह प्रक्रिया 1 अगस्त को ड्राफ्ट मतदाता सूची के प्रकाशन के साथ समाप्त होगी।