पेगासस जासूसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना, आतंकवादियों और राष्ट्रविरोधी तत्वों पर निगरानी जरूरी

'तलाकशुदा मुस्लिम महिला गुजारा भत्ता मांग सकती है'

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में 29 अप्रैल 2025 को पेगासस स्पाइवेयर मामले की सुनवाई हुई, जिसमें सरकार ने आतंकवादियों और राष्ट्रविरोधी तत्वों पर निगरानी को जायज ठहराया। कोर्ट ने तकनीकी समिति की सीलबंद रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी जानकारी का खुलासा नहीं हो सकता। मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी।

पेगासस, इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप का सैन्य-स्तर का स्पाइवेयर, कथित तौर पर भारत में पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, और राजनेताओं की जासूसी के लिए इस्तेमाल हुआ। याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि 2022 में सौंपी गई जांच समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत आशंकाओं का समाधान संभव है, लेकिन रिपोर्ट को सड़कों पर चर्चा के लिए नहीं खोला जा सकता।

कोर्ट ने निजता के अधिकार पर भी जोर दिया

जस्टिस सूर्या कांत की अगुवाई वाली बेंच ने सवाल उठाया, “अगर कोई देश आतंकवादियों या राष्ट्रविरोधी तत्वों पर निगरानी के लिए स्पाइवेयर का उपयोग करता है, तो इसमें क्या गलत है?” हालांकि, कोर्ट ने निजता के अधिकार पर भी जोर दिया, खासकर आम नागरिकों के संदर्भ में। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि मामले को दो साल बाद फिर से उठाया गया है।

यह निजता के अधिकार का उल्लंघन: याचिकाकर्ता

2022 में, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमाना की बेंच ने खुलासा किया था कि 29 फोनों की जांच में कुछ में मालवेयर पाया गया, लेकिन पेगासस की पुष्टि नहीं हुई। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है, जबकि सरकार का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ऐसे उपाय जरूरी हैं।

विपक्षी दलों को झटका देते हुए, कोर्ट ने सरकार के रुख का समर्थन किया, लेकिन निजता और सुरक्षा के बीच संतुलन पर विचार करने का संकेत दिया। यह मामला गोपनीयता, मानवाधिकार, और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच जटिल बहस को रेखांकित करता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *