नई दिल्ली। भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अक्टूबर 2024 के बाद अपने सबसे मजबूत स्तर पर पहुंच गया। यह 84 रुपये प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गई। रुपये की मजबूती के पीछे भारतीय शेयरों में डॉलर का आगमन और अमेरिका के साथ संभावित व्यापार सौदे की उम्मीदों से प्रेरित है।
रुपये की इस तेजी ने विश्लेषकों के मंदी के दृष्टिकोण को बदल दिया, जिन्होंने पहले इसके 88 तक गिरने की आशंका जताई थी। फरवरी 2025 में रुपया 87.95 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया था, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कनाडा, मैक्सिको और चीन पर शुल्क लगाए थे। हालांकि, हाल के महीनों में ब्रेंट क्रूड की कीमतों में 0.84% की गिरावट (69.55 डॉलर प्रति बैरल) और डॉलर इंडेक्स में 0.42% की कमी (101.64) ने रुपये को सहारा दिया।
भू-राजनीतिक तनावों के कारण रुपया 84.06 तक गिरा
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की हस्तक्षेप नीतियों ने भी रुपये की अस्थिरता को नियंत्रित किया। अक्टूबर 2024 में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की बिकवाली और भू-राजनीतिक तनावों के कारण रुपया 84.06 तक गिरा था। लेकिन हाल के विदेशी निवेश और निर्यातकों द्वारा डॉलर बिक्री ने इसे मजबूती दी। नोमुरा ने अनुमान लगाया है कि दिसंबर 2025 तक रुपया 84 प्रति डॉलर तक और मजबूत हो सकता है, जो कमजोर डॉलर इंडेक्स और विदेशी निवेश से प्रेरित होगा।
हालांकि, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि वैश्विक व्यापार नीतियों और अमेरिकी आर्थिक आंकड़ों पर नजर रखना जरूरी है। रुपये की इस मजबूती से आयात सस्ते हो सकते हैं, लेकिन निर्यातकों को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। भारतीय शेयर बाजारों में भी सकारात्मक प्रभाव देखा गया, जिससे निवेशक आशावादी बने हुए हैं।