आम आदमी पार्टी को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के उपराज्यपाल की स्वतंत्र शक्तियों को ठहराया वैध

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के उपराज्यपाल की स्वतंत्र शक्तियों को ठहराया वैध

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल के पास सरकार की सहमति के बिना दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में सदस्यों को नामित करने की शक्ति है।

कोर्ट ने फैसला सुनाया कि शक्ति दिल्ली नगर निगम अधिनियम से आती है, इसलिए उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह मानने की जरूरत नहीं है। चूंकि यह एक वैधानिक शक्ति है न कि कार्यकारी, इसलिए उपराज्यपाल को वैधानिक जनादेश का पालन करना होगा, न कि दिल्ली सरकार की सलाह के अनुसार।

संसद के कानून से मिली शक्तियां: सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने कहा, “यह सुझाव देना गलत है कि दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्ति सिमेंटिक लॉटरी थी। यह संसद द्वारा बनाया गया कानून है, यह उपराज्यपाल द्वारा प्रयोग किए गए विवेक को संतुष्ट करता है क्योंकि कानून के अनुसार उन्हें ऐसा करना पड़ता है और यह अनुच्छेद 239 के अपवाद के अंतर्गत आता है। 1993 एमसीडी अधिनियम जिसने पहली बार उपराज्यपाल को मनोनीत करने की शक्ति प्रदान की और यह अतीत का अवशेष नहीं है।”

2023 में एलजी ने की थी नियु्क्ति

एमसीडी में 10 एल्डरमेन के नामांकन पर विवाद के बीच सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने 17 मई, 2023 को उपराज्यपाल वीके सक्सेना की सलाह के बिना 10 एल्डरमेन को नामित करने के फैसले के संबंध में फैसला सुरक्षित रख लिया।

दिल्ली सरकार ने दी थी ये दलील

शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार की उस याचिका पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें उन अधिसूचनाओं को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसके माध्यम से उपराज्यपाल ने मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बजाय अपनी पहल पर एमसीडी में 10 सदस्यों को नामित किया था। दिल्ली सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि उपराज्यपाल चुनी हुई सरकार को दरकिनार नहीं कर सकते और एमसीडी में अपनी मर्जी से नियुक्तियां नहीं कर सकते।

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