नई दिल्ली। सोमवती अमावस्या एक पवित्र हिंदू त्योहार है, जिसे हर उस अमावस्या को मनाया जाता है जो सोमवार के दिन पड़ती है। यह दिन धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है और इसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों व शास्त्रों में मिलता है। इस दिन देवी-देवताओं की पूजा, नदी स्नान, दान और व्रत जैसे कर्म किए जाते हैं। सोमवती अमावस्या का आध्यात्मिक और ज्योतिषीय महत्व भी है।
धार्मिक महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन व्रत और दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन गंगा, यमुना, और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना पापों का नाश करता है और व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करता है। विवाहित महिलाओं के लिए यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। वे अपने पति की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए व्रत रखती हैं।
परंपराएं और रीति-रिवाज
1. स्नान और पूजा: इस दिन भक्त पवित्र नदियों, जैसे गंगा, यमुना, और सरस्वती में स्नान करते हैं। अगर नदी में स्नान संभव न हो, तो घर में स्नान करते समय गंगाजल मिलाने की परंपरा है।
2. वट वृक्ष की पूजा: विवाहित महिलाएं वट (बरगद) के वृक्ष की पूजा करती हैं। वट वृक्ष को अखंड सुहाग और पति की लंबी उम्र का प्रतीक माना गया है।
3. दान का महत्व: इस दिन भोजन, वस्त्र, और धन का दान विशेष फलदायी माना जाता है। पीपल के वृक्ष की पूजा और उसे जल अर्पित करना भी शुभ माना गया है।
4. पितृ तर्पण: सोमवती अमावस्या का उपयोग पितरों के तर्पण और श्राद्ध के लिए भी किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए गए तर्पण से पूर्वज प्रसन्न होते हैं।
ज्योतिषीय महत्व
सोमवती अमावस्या को चंद्रमा और सूर्य का विशेष संयोग माना गया है। यह दिन ध्यान, साधना, और आध्यात्मिक उन्नति के लिए श्रेष्ठ होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन ग्रह दोषों की शांति के लिए किए गए उपाय अत्यधिक प्रभावी होते हैं।
सोमवती अमावस्या धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन किए गए व्रत, पूजा, और दान से न केवल वर्तमान जीवन में सुख-शांति मिलती है, बल्कि यह आध्यात्मिक और आत्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। यह त्योहार भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्था का अद्भुत उदाहरण है।