नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि के खिलाफ एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें राज्य विधानसभा द्वारा पारित 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने के उनके कदम को ‘गैरकानूनी और मनमाना’ करार दिया गया। यह मामला तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच लंबे समय से चले आ रहे टकराव का परिणाम था, जहां राज्य सरकार ने आरोप लगाया था कि राज्यपाल विधायी प्रक्रिया में बाधा डाल रहे हैं।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल के पास विधेयकों पर अनिश्चितकाल तक रोक लगाने या ‘पॉकेट वीटो’ का अधिकार नहीं है और उन्हें राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना अनिवार्य है। इस फैसले के तहत, इन 10 विधेयकों को उसी दिन से स्वीकृत माना गया, जिस दिन वे दोबारा राज्यपाल के पास भेजे गए थे।
राज्यपाल की शक्तियों पर एक स्पष्ट रेखा खींची
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने कहा, “राज्यपाल का यह कदम संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लंघन करता है। वे विधेयकों को अस्वीकार करने, स्वीकृत करने या राष्ट्रपति के विचार के लिए भेजने में से कोई एक कदम उठा सकते हैं, लेकिन मनमानी नहीं कर सकते।” कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि राज्यपाल को विधेयक प्राप्त होने के तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा, वरना उनकी निष्क्रियता न्यायिक समीक्षा के दायरे में आएगी। इस फैसले ने राज्यपाल की शक्तियों पर एक स्पष्ट रेखा खींची और राज्य सरकारों की स्वायत्तता को मजबूत किया।
‘देश के सभी राज्यों के लिए जीत’ करार दिया
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस फैसले को ‘ऐतिहासिक’ और ‘देश के सभी राज्यों के लिए जीत’ करार दिया। उन्होंने कहा, “यह न केवल तमिलनाडु के लिए, बल्कि संघीय ढांचे और राज्य स्वायत्तता के लिए बड़ी जीत है।” स्टालिन ने राज्यपाल पर पहले भी बीजेपी के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया था। दूसरी ओर, राज्यपाल रवि ने दावा किया था कि संविधान उन्हें विधेयकों पर असहमति जताने का अधिकार देता है, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
यह विवाद तब शुरू हुआ जब राज्यपाल ने 2020 से लंबित कुछ विधेयकों सहित कई विधेयकों पर सहमति देने से इनकार कर दिया था। तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें कुल 12 विधेयकों का जिक्र था। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल का व्यवहार ‘अवैध’ होने के साथ-साथ संवैधानिक भावना के खिलाफ था। इस फैसले का असर अन्य विपक्षी शासित राज्यों जैसे केरल, पश्चिम बंगाल और पंजाब पर भी पड़ सकता है, जहां राज्यपालों और सरकारों के बीच इसी तरह के टकराव देखे गए हैं।