नई दिल्ली। कर्नाटक हाईकोर्ट के एक जज ने उस महिला को कड़ी फटकार लगाई है, जिसने अपने पति से हर महीने 6 लाख रुपये से ज्यादा भरण-पोषण की मांग की थी। महिला राधा मुनुकुंतला हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत वित्तीय सहायता की मांग कर रही थी और उसने अपनी मांग को उचित ठहराने के लिए अपने मासिक खर्चों का विवरण दिया था।
20 अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान, मुनुकुंतला के वकील ने अदालत में अपने खर्चों का ब्योरा पेश किया और कहा कि उनके मुवक्किल को जूते, कपड़े, चूड़ियां और अन्य सामान के लिए प्रति माह 15,000 रुपये, घर पर भोजन के लिए 60,000 रुपये प्रति माह की जरूरत है। उनके घुटने के दर्द के इलाज, फिजियोथेरेपी और चिकित्सा खर्च के लिए 4-5 लाख रुपये की जरूरत है।
वकील ने कहा कि महिला कुल मिलाकर अपने पति से 6,16,300 रुपये गुजारा भत्ता चाहती थी। लेकिन, जज इतनी अधिक रकम से हैरान रह गए और उन्होंने बिना किसी पारिवारिक जिम्मेदारी के अकेली महिला के लिए इस तरह के खर्च की आवश्यकता पर सवाल उठाया। न्यायाधीश ने वकील से कहा, “कृपया अदालत को यह न बताएं कि एक व्यक्ति को 6,16,300 रुपये प्रति माह चाहिए।! क्या कोई अकेली महिला अपने लिए इतना खर्च करती है? अगर वह इतना खर्च करना चाहती है तो उसे कमाने चाहिए न कि पति से लेने चाहिए।”
पति को सजा देने के लिए कानून का दुरुपयोग नहीं
कोर्ट ने कहा, “आप पर परिवार की कोई अन्य जिम्मेदारी नहीं है। आपको बच्चों की देखभाल करने की जरूरत नहीं है। आप इसे अपने लिए चाहते हैं। यह धारा 24 का उद्देश्य नहीं है। यह पति के लिए कोई सजा नहीं है कि वह है उसका अपनी पत्नी के साथ विवाद है और उसे 6,16,300 रुपये का भुगतान करना होगा, आपको यह बताने में उचित होना चाहिए।”
याचिका खारिज करने की दी चेतावनी
न्यायाधीश ने वकील को अधिक उचित राशि के साथ आने के लिए कहा। साथ ही चेतावनी दी कि यदि मांगों को संशोधित नहीं किया गया तो याचिका खारिज कर दी जाएगी। सुनवाई के दौरान महिला वकील से जज की बातचीत का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। न्यायाधीश के शब्द स्पष्ट संकेत थे कि अदालत अनुचित मांगों को बर्दाश्त नहीं करेगी, खासकर जब वे बुनियादी आवश्यकताओं के बजाय विलासिता की इच्छा से प्रेरित हों।