‘वक्फ बाय यूजर’ प्रावधान को खत्म करने से गंभीर परिणाम होंगे, वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने की बड़ी टिप्पणी

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 16 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले में कई अहम सवाल उठाए।

कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि ‘वक्फ बाय यूजर’ की अवधारणा को क्यों हटाया गया, क्योंकि 14वीं-16वीं सदी की मस्जिदों जैसे कई वक्फों के पास बिक्री दस्तावेज नहीं होंगे। सीजेआई खन्ना ने उदाहरण दिया कि उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट में जज रहते हुए बताया गया था कि कोर्ट की जमीन भी वक्फ संपत्ति है। उन्होंने कहा कि सभी वक्फ बाय यूजर संपत्तियां गलत नहीं हैं, लेकिन कुछ में चिंताएं हैं।

कोर्ट ने तीन चिंताएं जाहिर की

कोर्ट ने तीन प्रमुख मुद्दों पर चिंता जताई: पहला, पहले कोर्ट के फैसलों से घोषित वक्फ बाय यूजर संपत्तियों का अब अमान्य होना; दूसरा, वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों का बहुमत होना; और तीसरा, कलेक्टर की जांच लंबित होने पर संपत्ति को वक्फ न मानना। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि यह कानून 20 करोड़ मुस्लिमों की आस्था पर संसदीय अतिक्रमण है और गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। जवाब में, सीजेआई ने पूछा कि क्या संसद मुस्लिमों के लिए कानून नहीं बना सकती, और अनुच्छेद 26 को धर्मनिरपेक्ष बताते हुए कहा कि यह सभी पर लागू होता है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा केंद्र का पक्ष

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र का पक्ष रखते हुए कहा कि विवादित या सरकारी संपत्तियों को छोड़कर मौजूदा वक्फ बने रहेंगे। कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में कानून के खिलाफ हिंसा की निंदा की और कहा कि मामला अदालत में है, इसलिए हिंसा गलत है। कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं किया गया, और सुनवाई 17 अप्रैल को दोपहर 2 बजे जारी रहेगी। सात बीजेपी शासित राज्यों ने कानून का समर्थन किया है, जबकि कांग्रेस, AIMIM, DMK और अन्य ने इसे असंवैधानिक बताया है।

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