क्या है जातिगत जनगणना, जिसे मोदी कैबिनेट ने दी मंजूरी, इससे क्या होगा फायदा

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने 30 अप्रैल 2025 को एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जातिगत गणना को शामिल करने की मंजूरी दी। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने घोषणा की कि यह कदम सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देगा।

जातिगत जनगणना का अर्थ है जनसंख्या को उनकी जाति के आधार पर गिनना, जो 1931 के बाद पहली बार व्यापक रूप से किया जाएगा। इससे पहले, 1951 से केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गणना होती थी, जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अन्य जातियों का डेटा नहीं जुटाया गया।

क्या हैं इसके फायदे

जातिगत जनगणना के कई फायदे हैं। सबसे बड़ा लाभ है सटीक नीति निर्माण। यह डेटा सरकार को यह समझने में मदद करेगा कि कौन सी जातियां सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़ी हैं, जिससे शिक्षा, रोजगार, और आरक्षण योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकेगा।

बिहार के उदाहरण से समझिए

उदाहरण के लिए, बिहार के जाति सर्वेक्षण ने दिखाया कि 63% आबादी OBC और अति पिछड़ा वर्ग से है, जिसके आधार पर वहां नीतियां बनाई गईं। दूसरा, यह OBC के भीतर उप-श्रेणीकरण में सहायक होगा, ताकि लाभ केवल प्रभावशाली जातियों तक सीमित न रहे। तीसरा, यह सामाजिक न्याय को बढ़ावा देगा, क्योंकि संसाधनों का वितरण आबादी के अनुपात में होगा।

वैष्णव ने कांग्रेस पर इसे राजनीतिक हथियार बनाने का आरोप लगाया

विपक्षी नेता राहुल गांधी ने इसे अपनी “जितनी आबादी, उतना हक” नीति की जीत बताया, जबकि वैष्णव ने कांग्रेस पर इसे राजनीतिक हथियार बनाने का आरोप लगाया। कुछ आलोचक मानते हैं कि यह जातिवाद को बढ़ा सकता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि बिना डेटा के सामाजिक असमानता को दूर करना मुश्किल है। 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना के परिणाम सार्वजनिक नहीं हुए, जिसके बाद यह मांग तेज हुई। कोविड के कारण स्थगित जनगणना अब 2026 में होगी, जो भारत के सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

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