नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद के आगामी मॉनसून सत्र (21 जुलाई से 21 अगस्त) में महाभियोग प्रस्ताव लाने की योजना की घोषणा की। यह कदम मार्च 2025 में दिल्ली में जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास पर आग लगने के बाद जली हुई नोटों की बोरियां मिलने के विवाद के बाद उठाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की जांच समिति ने 64 पेज की रिपोर्ट में वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को पुष्ट किया, जिसके बाद उनकी दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट वापसी हुई। वर्तमान में उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है।
विपक्षी दिलों ने समर्थन का दिया भरोसा
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव का समर्थन करने का भरोसा दिया है। लोकसभा में प्रस्ताव के लिए 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक हैं। सरकार ने अभी यह तय नहीं किया है कि प्रस्ताव किस सदन में पेश किया जाएगा। कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई को असंवैधानिक बताया, लेकिन विपक्ष और सरकार में सहमति दिख रही है।
जस्टिस वर्मा के आउटहाउस में नोटों की निगरानी की व्यवस्था थी
जांच समिति ने पाया कि जस्टिस वर्मा के आउटहाउस में नोटों की निगरानी की व्यवस्था थी, और उन्होंने पैसे की जानकारी से इनकार किया था। तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने उनसे इस्तीफा मांगा था, लेकिन वर्मा ने इनकार कर दिया। यह मामला भारत के इतिहास में पहला ऐसा मौका हो सकता है, जहां किसी हाईकोर्ट जज का महाभियोग हो। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम न्यायिक जवाबदेही के लिए सीमित जीत हो सकता है, क्योंकि व्यवस्थागत भ्रष्टाचार के बड़े सवाल अनुत्तरित रहेंगे। इस घटना ने न्यायपालिका की पारदर्शिता और सुधारों पर बहस छेड़ दी है।