नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि भविष्य में लोकसभा और विधानसभा सीटों के डीलिमिटेशन (सीमा निर्धारण) के दौरान सभी राज्यों के साथ न्याय होगा। उनका यह बयान दक्षिण भारतीय राज्यों में राजनीतिक बहस का कारण बन गया है, जहां जनसंख्या नियंत्रण की सफलता के कारण सीटों की संभावित संख्या में बदलाव की आशंका जताई जा रही है।
अमित शाह ने यह बयान एक कार्यक्रम में दिया, जहां उन्होंने कहा, “डीलिमिटेशन एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जिसे निष्पक्ष तरीके से लागू किया जाएगा। इसमें किसी भी राज्य के साथ भेदभाव नहीं होगा और सभी क्षेत्रों की समान भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी।”
क्या है डीलिमिटेशन और दक्षिण भारत की चिंता?
डीलिमिटेशन का अर्थ है निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्गठन, जिससे जनसंख्या के अनुसार सीटों का संतुलन सुनिश्चित किया जा सके। वर्तमान में लोकसभा सीटों का निर्धारण 1971 की जनगणना के आधार पर हुआ था, लेकिन 2026 में प्रस्तावित डीलिमिटेशन में हालिया जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर बदलाव हो सकता है।
दक्षिण भारतीय राज्यों— तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश — में दशकों से जनसंख्या नियंत्रण को प्राथमिकता दी गई है, जबकि उत्तर भारतीय राज्यों में जनसंख्या वृद्धि अधिक रही है। इससे आशंका जताई जा रही है कि डीलिमिटेशन के बाद दक्षिण के राज्यों की लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या घट सकती है, जबकि उत्तर भारत में सीटें बढ़ सकती हैं।
विपक्ष और दक्षिणी राज्यों की प्रतिक्रिया
अमित शाह के बयान के बाद दक्षिण भारतीय दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कहा, “अगर डीलिमिटेशन से दक्षिण के राज्यों की सीटें कम होती हैं, तो यह हमारे साथ अन्याय होगा। हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे।”
तेलंगाना और केरल के नेताओं ने भी चिंता जताते हुए कहा कि डीलिमिटेशन की प्रक्रिया को राज्यों के विकास और जनसंख्या नियंत्रण प्रयासों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।”
भाजपा की रणनीति
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा उत्तर भारतीय राज्यों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए सीटों में वृद्धि कर सकती है। हालांकि, पार्टी दक्षिण भारत में भी अपने विस्तार की योजना बना रही है, जिससे संतुलन बनाए रखने की कोशिश होगी।
डीलिमिटेशन पर अमित शाह का यह बयान ऐसे समय में आया है जब 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद इस पर गंभीर बहस होने की संभावना है। अब यह देखना होगा कि सरकार इस संवेदनशील मुद्दे को किस तरह संतुलित करती है।