नई दिल्ली। कनाडा में 28 अप्रैल 2025 को हुए संघीय चुनाव में मार्क कार्नी के नेतृत्व वाली लिबरल पार्टी ने जीत हासिल की, जिससे भारत-कनाडा संबंधों में सुधार की उम्मीद जगी है। कार्नी, जो मार्च में जस्टिन ट्रूडो की जगह प्रधानमंत्री बने, ने अल्पमत सरकार बनाई, जो 343 सीटों वाले संसद में 172 सीटों से कम है। उनकी जीत का मुख्य कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की व्यापार युद्ध और कनाडा को 51वां अमेरिकी राज्य बनाने की धमकी थी, जिसने कनाडाई राष्ट्रवाद को उभारा।
भारत के लिए इस जीत का विशेष महत्व है। ट्रूडो के कार्यकाल में खालिस्तानी समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर 2023 में भारत पर लगाए गए आरोपों से दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे। इसके बाद राजनयिकों की निष्कासन और व्यापार वार्ताओं का ठप होना जैसे कदम उठे। कार्नी ने भारत के साथ संबंधों को ‘बेहद महत्वपूर्ण’ बताते हुए इसे व्यक्तिगत, आर्थिक और रणनीतिक स्तर पर मजबूत करने की इच्छा जताई है। उन्होंने निज्जर मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की, जो पुराने विवादों को पीछे छोड़ने का संकेत देता है।
भारत के खिलाफ बयानबाजी को बढ़ावा दिया
खालिस्तान मुद्दे पर भी बदलाव की उम्मीद है। ट्रूडो की सरकार को खालिस्तानी समर्थक जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) का समर्थन प्राप्त था, जिसने भारत के खिलाफ बयानबाजी को बढ़ावा दिया। चुनाव में NDP का पतन और सिंह का इस्तीफा भारत के लिए सकारात्मक है। कार्नी, एक अर्थशास्त्री और पूर्व केंद्रीय बैंकर, व्यापार और निवेश पर ध्यान दे सकते हैं, खासकर जब भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में उभर रहा है।
भारत में 18 लाख इंडो-कनाडाई और 4.27 लाख भारतीय छात्र हैं। 2023 में द्विपक्षीय व्यापार 13.49 बिलियन कनाडाई डॉलर रहा, लेकिन व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA) रुका हुआ है। कार्नी के नेतृत्व में इसे पुनर्जनन की उम्मीद है। भारत कार्नी के खालिस्तानी समर्थकों पर रुख को करीब से देखेगा।