सरकारी मूल्य नियंत्रण वाली कैंसर, मधुमेह की दवाएं महंगी होंगी, जानें क्यों लिया गया यह फैसला

नई दिल्ली। भारत में सरकार द्वारा नियंत्रित दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी होने जा रही है। इंडिया टुडे टीवी की सहयोगी प्रकाशन बिजनेस टुडे के अनुसार, सरकार के सूत्रों ने बताया कि कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और एंटीबायोटिक्स जैसी आवश्यक दवाओं की कीमतों में 1.7% की वृद्धि की जाएगी।

यह फैसला राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) द्वारा लिया गया है, जो देश में अनुसूचित दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करता है। ये दवाएं राष्ट्रीय आवश्यक औषधि सूची (एनएलईएम) का हिस्सा हैं, जिनका उपयोग आम बीमारियों के इलाज में होता है और इनकी कीमतें सरकार द्वारा तय की जाती हैं।

मूल्यवृद्धि दवा उद्योग के लिए राहत की खबर

यह मूल्य वृद्धि दवा उद्योग के लिए राहत लेकर आई है, क्योंकि कच्चे माल और अन्य खर्चों की लागत में लगातार इजाफा हो रहा है। अखिल भारतीय रसायनज्ञ और औषधि विक्रेता संगठन (एआईओसीडी) के महासचिव राजीव सिंघल ने कहा कि यह कदम उद्योग को बढ़ती लागत से निपटने में मदद करेगा।

आम लोगों के लिए चिंता का विषय

पिछले साल एनपीपीए ने थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में 10.76% की वृद्धि की घोषणा की थी, जिससे करीब 800 अनुसूचित दवाओं की कीमतें प्रभावित हुई थीं। इस बार की वृद्धि अपेक्षाकृत कम है, लेकिन आम लोगों के लिए यह चिंता का विषय बन सकती है, खासकर तब जब स्वास्थ्य व्यय पहले से ही बढ़ रहा है।

मरीजों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा

हालांकि, यह मूल्य वृद्धि मामूली लग सकती है, लेकिन कैंसर और मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए यह अतिरिक्त बोझ बढ़ा सकती है। भारत में पहले से ही स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और लागत एक बड़ी चुनौती है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को सस्ती दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक उपायों पर ध्यान देना चाहिए, जैसे जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देना। दूसरी ओर, दवा कंपनियों का तर्क है कि कच्चे माल की कीमतों में वैश्विक स्तर पर हुई बढ़ोतरी और आयात पर निर्भरता के कारण यह कदम जरूरी था।

विपक्ष ने की फैसले की आलोचना

विपक्ष ने इस फैसले की आलोचना की है और इसे आम जनता पर अतिरिक्त बोझ बताया है। उनका कहना है कि सरकार को स्वास्थ्य क्षेत्र में सब्सिडी बढ़ानी चाहिए, न कि दवाओं को महंगा करना चाहिए। इस बीच, सरकार का कहना है कि यह वृद्धि संतुलित है और उद्योग की स्थिरता के लिए जरूरी है।

यह बदलाव अप्रैल 2025 से लागू होने की संभावना है, जिसके बाद मरीजों को इन दवाओं के लिए थोड़ा अधिक भुगतान करना पड़ सकता है। इस फैसले का असर बाजार और स्वास्थ्य सेवाओं पर कितना होगा, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।

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