पवन चोपड़ा, चंडीगढ़। हरियाणा विधानसभा चुनाव में लगातार हार की हैट्रिक लगने के बाद कांग्रेस हाई कमान अब कड़े फैसले लगा या फिर उसी तरह लकीर के फकीर बने रहेंगे। जिस तरह बीते सभी चुनावों मे ईवीएम के सिर ठीकरा फोड खुद का बचाव कर अपने आप को ही धोखा देने का काम करेंगे। पार्टी हाई कमान द्वारा एक नेता और जाति विशेष पर आंख मूंद सत्ता में आने का भरोसा बड़ा ही भारी पड़ गया है। भले ही कांग्रेस पार्टी ईवीएम मशीन में गड़बड़ी को लेकर इलेक्शन कमिशन में दस्तक दे चुकी है।
लेकिन जिस प्रकार से सभी राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा गुटबाजी के अलावा इस हार की सबसे सबसे अहम कड़ी भूपेंद्र हुड्डा को माना जा रहा है। क्योंकि भूपेंद्र हुड्डा ही नहीं चाहते थे कि पार्टी बंपर सीटें जीते। ऐसा होने पर जहां उनके या उनके बेटे के लिए प्रदेश की कुर्सी की राह आसान थी। लेकिन बहुमत से अधिक सीटें होने पर कांग्रेस हाई कमान मुख्यमंत्री चेहरा किसी और को न बना दे। पिछले कई दिनों से तमाम राजनीतिक विशेषज्ञों की राय में यह बात खुलकर सामने आ चुकी है ।कि हुड्डा द्वारा स्वयं ही पार्टी उम्मीदवारों को हराने के लिए बागी उम्मीदवारों को खड़ा किया गया था।
बागी पार्टी के विरुद्ध झंडा बुलंद कर मैदान में उतरे
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस पार्टी से लगभग 2 दर्जन से भी अधिक बागी पार्टी के विरुद्ध झंडा बुलंद कर मैदान में उतरे हुए थे। जहां उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार से अधिक या फिर उसके आसपास मत लेने का काम किया जिस कारण त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा आसानी से जीतने में कामयाब रही। जिससे भाजपा को लगभग एक दर्जन सीटों का सीधा फायदा मिला और दूर की कौड़ी लग रही सत्ता बड़ी ही आसानी से उसकी झोली में आना पड़ी।
इसके अलावा प्रदेश के बड़े दलित चेहरा कुमारी शैलजा पर की गई अभद्र टिप्पणी पर भी हुड्डा द्वारा कई दिनों तक कोई तवज्जो न दिए जाना और हुड्डा का अति आत्मविश्वास भी इस हार में मुख्य कारण रहा जिसके चलते दलित वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस से छिटक भाजपा के पहले में चला गया। वहीं भाजपा ने भी कांग्रेस की इस अंतरकलह बखूबी फायदा उठाते हुए इस चुनावी मुद्दा बनाकर कांग्रेस के बड़े वोट बैंक में सेंध लगाने का काम किया। यही नहीं आक्रामक जाट पॉलिटिक्स रोकने के लिए गैर जाट ने सीधे भाजपा विकल्प चुना।
क्या कांग्रेस हाई कमान भाजपा से लगा सीख
10 साल सरकार भाजपा के खिलाफ बने माहौल के बावजूद हरियाणा कांग्रेस के हाथ से प्रदेश की सत्ता रेत की तरह फिसल गई है। ऐसे में अब क्या कांग्रेस हाई कमान भी पार्टी संगठन को कड़े फैसले के रूप में कड़ी दवाई देगा या फिर अतीत की तरह ही राम भरोसे छोड़ेगा। स्वयं राहुल गांधी भी यह बात स्वीकार कर चुके हैं कि हरियाणा के नेताओं का स्वयं हित पार्टी हित से ऊपर रहा। जबकि दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रहित प्रथम पार्टी द्वितीय और स्वयंम हित तृतीय स्थान पर रखा जाता है।
नायब ने जीत के बाद भी संगठन का फैसला सर्वोपरि
विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद जैसे ही भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापस कर चुकी है। इसके बाद भी कार्यवाहक मुख्यमंत्री नायब सैनी ने कहा की संगठन द्वारा उन्हें जिम्मेवारी दी गई थी उन्होंने उसे बखूबी निभाने का काम किया अब मुख्यमंत्री बनाने का फैसला पार्टी का केंद्रीय बोर्ड करेगा और उसका जो भी फैसला होगा वह उन्हें मान्य होगा। वहीं दूसरी ओर पिछले 50 वर्षों से पार्टी को सेवा करने वाले पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व मंत्री रामबिलास शर्मा का टिकट करने के बावजूद भी पार्टी के प्रति वफादारी पार्टी के प्रति समर्पण दिखाता है।
इसके अलावा भाजपा हाई कमान द्वारा मध्य प्रदेश में शिवराज चौहान, राजस्थान में वसुंधरा राजे, छत्तीसगढ़ रमन सिंह, महाराष्ट्र देवेंद्र फडणवीस व हरियाणा में मनोहर लाल को भी पार्टी हित के लिए हटाने में तनिक भी देरी नहीं लगाई। इस जहां सरकार विरोधी चेहरे से लोगों का ध्यान आसानी से हटाया जा सकता है। इसके अलावा पार्टी में भविष्य के नेताओं की अगली पीढ़ी को तैयार किया जा रहा है और कार्यकर्ता का भी मनोबल बढ़ता है शायद उनका भी नंबर आ जाए।
गैर जाट में कांग्रेस के पास ये बडे़ चेहरे
हालांकि पिछले लंबे समय से हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष पद की बागडोर दलित चेहरे के ही हाथ में है। मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष उदयभान खुद विधानसभा चुनाव हार गए। इसके अलावा प्रदेश के दलित समाज में भी उनका मिला खास प्रभाव देखने को नहीं मिला। जबकि दूसरी ओर पूर्व केंद्रीय कुमारी शैलजा के महिला चेहरा होने से दोहरा लाभ मिलेगा। इसके अलावा पूर्व अध्यक्ष डॉ अशोक तंवर जुझारू और मिलनसार प्रवृत्ति के हैं। जो कि संगठन की मजबूती के लिए प्रदेश में साइकिल यात्रा भी कर चुके हैं। इसके अलावा तीसरा दलित चेहरा अंबाला से सांसद वरुण मुलाना है।
वहीं स्वर्ण समाज में कांग्रेस के पास थानेसर सीट से पांचवीं बार विधायक बने अशोक अरोड़ा भी एक बड़ा चेहरा है। जिनके पास इनेलो पार्टी का सबसे लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष रहने का अनुभव के साथ-साथ मिलनसार, मृदु भाषी और बेदाग छवि है।