नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास से हाल ही में बड़ी मात्रा में नकदी की बरामदगी ने एक बार फिर सुर्खियां बटोर ली हैं। इस घटना ने 2018 के सिम्भावली शुगर मिल धोखाधड़ी मामले को फिर से चर्चा में ला दिया है, जिसमें जस्टिस वर्मा का नाम भी शामिल था।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, 14 मार्च 2025 को जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में आग लगने के बाद दमकलकर्मियों ने वहां से भारी मात्रा में नकद राशि बरामद की। इस घटना ने क्षेत्र में हलचल मचा दी और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने तुरंत कार्रवाई करते हुए वर्मा को उनके मूल कोर्ट, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने का फैसला किया।
सीबीआई ने वर्मा को 10वें आरोपी के रूप में नामित किया
सिम्भावली शुगर मिल मामला 2018 में तब सामने आया जब सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई) ने ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स की शिकायत पर जांच शुरू की। बैंक ने आरोप लगाया था कि सिम्भावली शुगर मिल ने किसानों के लिए 97.85 करोड़ रुपये के ऋण को गलत तरीके से इस्तेमाल किया और उसे अन्य खातों में स्थानांतरित कर दिया। उस समय यशवंत वर्मा कंपनी के गैर-कार्यकारी निदेशक थे और सीबीआई ने उन्हें दसवें आरोपी के रूप में नामित किया था।
इस मामले में 12 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, लेकिन जांच आगे नहीं बढ़ सकी। फरवरी 2024 में एक अदालत ने सीबीआई को जांच फिर से शुरू करने का आदेश दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया, जिसके बाद मामला बंद हो गया।
घटना ने वर्मा के पिछले वितीय लेनदेन पर उठाए सवाल
हाल की घटना ने वर्मा के पिछले वित्तीय लेनदेन पर सवाल उठाए हैं। आग लगने की सूचना पर पहुंचे दमकलकर्मियों ने जले हुए जूट के बोरों के बीच नकदी बिखरी हुई पाई। एक कर्मचारी ने दावा किया कि नष्ट हुए सामान में कोर्ट से संबंधित दस्तावेज और स्टेशनरी शामिल थे, लेकिन नकदी की मौजूदगी ने संदेह पैदा कर दिया। इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक आंतरिक जांच शुरू की और दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से रिपोर्ट मांगी। वर्मा अगले दिन कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए और कथित तौर पर छुट्टी पर थे।
कपिल सिब्बल ने नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार की मांग की
इस घटना ने प्रणाली की पारदर्शिता और जवाबदेही पर बहस छेड़ दी है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार की मांग की, जबकि इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने वर्मा के स्थानांतरण का विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उनका स्थानांतरण जांच से स्वतंत्र है, लेकिन यह मामला司法 की साख पर गंभीर सवाल खड़े करता है।