नई दिल्ली। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने मंगलवार को घोषणा की कि इस साल देश में मानसून के दौरान सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना है। आईएमडी के अनुसार, जून से सितंबर तक चलने वाले दक्षिण-पश्चिम मानसून में बारिश दीर्घकालिक औसत (एलपीए) का 105% होगी, जिसमें 5% की मॉडल त्रुटि संभव है। एलपीए 87 सेंटीमीटर है और यह अनुमान देश के कृषि क्षेत्र के लिए राहत की खबर है, जो मानसून पर बहुत हद तक निर्भर करता है।
आईएमडी के अधिकारियों ने बताया कि सभी प्रमुख जलवायु कारक, जैसे एल नीनो और इंडियन ओशन डायपोल (आईओडी), वर्तमान में न्यूट्रल स्थिति में हैं, जो एक स्वस्थ मानसून के लिए अनुकूल है। एल नीनो, जो आमतौर पर प्रशांत महासागर में सतह के पानी के तापमान में वृद्धि के कारण भारत में कम बारिश लाता है, इस बार प्रभावी नहीं होगा। इसके अलावा, यूरेशिया और हिमालय क्षेत्र में बर्फ की कम मात्रा भी मानसून के लिए सकारात्मक संकेत है। ऐतिहासिक रूप से, इन क्षेत्रों में कम बर्फ का संबंध भारत में बेहतर मानसूनी बारिश से रहा है।
अधिकांश हिस्सों में अनुकूल बारिश की उम्मीद
आईएमडी ने कहा कि देश के अधिकांश हिस्सों में अनुकूल बारिश की उम्मीद है, लेकिन लद्दाख, तमिलनाडु और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में सामान्य से कम बारिश हो सकती है। दक्षिण-पश्चिम मानसून आमतौर पर 1 जून के आसपास केरल से शुरू होता है और मध्य सितंबर तक वापस चला जाता है। इस साल की भविष्यवाणी से खरीफ फसलों की बुवाई और जल संसाधनों की पूर्ति में मदद मिलेगी। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने कहा कि यह बारिश कृषि क्षेत्र को बहुत जरूरी बढ़ावा देगी।
मानसून के पैटर्न में अनियमितता बढ़ रही
हालांकि, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून के पैटर्न में अनियमितता बढ़ रही है। पिछले कुछ वर्षों में बारिश की तीव्रता और वितरण में बदलाव देखा गया है, जिसके चलते बाढ़ और सूखे जैसी घटनाएं बढ़ी हैं। आईएमडी ने कहा कि वे स्थिति पर नजर रखेंगे और समय-समय पर अपडेट देते रहेंगे।