नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 मई को 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित करने के भारत के फैसले पर पहली बार सार्वजनिक टिप्पणी की, यह कहते हुए कि भारत का पानी अब देश में ही रहेगा और इसका उपयोग किया जाएगा। यह बयान 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच आया। हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े द रेसिस्टेंस फ्रंट ने ली थी, जिसे पाकिस्तान की आईएसआई का समर्थन माना जाता है।
मोदी ने कहा कि आतंकवाद और पानी साथ नहीं बह सकते, और पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाने होंगे। उन्होंने जोर दिया कि भारत अब अपने हिस्से के पानी का उपयोग जम्मू-कश्मीर और अन्य क्षेत्रों में सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए करेगा।
पाकिस्तान ने इसे युद्ध की कार्रवाई करार दिया
इस फैसले के बाद चिनाब नदी पर बगलिहार और सलाल बांधों के गेट बंद किए गए, जिससे पाकिस्तान में खरीफ फसलों के लिए जल संकट गहरा गया। पाकिस्तान ने इसे युद्ध की कार्रवाई करार दिया और विश्व बैंक से हस्तक्षेप की मांग की, लेकिन भारत ने स्पष्ट किया कि संधि तब तक निलंबित रहेगी जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को पूरी तरह छोड़ नहीं देता।
भारतीय विमानों के लिए हवाई क्षेत्र बंद कर दिया
मोदी ने हमले के दोषियों को पृथ्वी के किसी भी कोने से ढूंढकर सजा देने का संकल्प दोहराया। भारत ने अन्य कदमों में अटारी-वाघा सीमा बंद करना, पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द करना और दोनों देशों के उच्चायोगों में कर्मचारियों की संख्या घटाना शामिल किया। पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई में शिमला समझौते को निलंबित किया और भारतीय विमानों के लिए हवाई क्षेत्र बंद कर दिया।
भारत की आतंकवाद के खिलाफ कठोर नीति
जल शक्ति मंत्री सीआर पाटील ने कहा कि भारत एक तीन-चरणीय योजना पर काम कर रहा है ताकि सिंधु नदी का एक बूंद पानी भी पाकिस्तान न जाए। यह कदम पाकिस्तान की 80% कृषि, जो सिंधु प्रणाली पर निर्भर है, पर गहरा असर डाल सकता है। यह ड्रिल और कूटनीतिक कदम भारत की आतंकवाद के खिलाफ कठोर नीति को दर्शाते हैं।