नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट आज वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। इन याचिकाओं में दावा किया गया है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभाव करता है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26 और 300A के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ताओं में AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB), जमीअत उलेमा-ए-हिंद, YSRCP, DMK, CPI और अभिनेता-राजनेता विजय शामिल हैं। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और के.वी. विश्वनाथन की पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी।
समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन
याचिकाओं में कहा गया है कि यह कानून वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने, पांच साल तक इस्लाम का पालन करने की शर्त और ‘वक्फ बाय यूजर’ की अवधारणा को हटाने जैसे प्रावधानों के जरिए मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता को कमजोर करता है। AIMPLB ने इसे मनमाना, भेदभावपूर्ण और बहिष्करण पर आधारित बताया है, जो वक्फ प्रशासन पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाता है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह कानून अन्य धार्मिक संस्थाओं के लिए समान प्रतिबंध लागू किए बिना केवल मुस्लिम वक्फों को निशाना बनाता है, जो समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
भाजपा शासित राज्यों ने कानून का किया समर्थन
दूसरी ओर, सात भाजपा शासित राज्य- हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, असम और उत्तराखंड ने इस कानून का समर्थन करते हुए हस्तक्षेप याचिकाएं दायर की हैं। उनका कहना है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के पारदर्शी और कुशल प्रबंधन के लिए आवश्यक है। असम ने विशेष रूप से अनुच्छेद 3E का उल्लेख किया, जो संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत संरक्षित क्षेत्रों में भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित करने पर रोक लगाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह सुधार सैकड़ों मुस्लिम विधवाओं के पत्रों के बाद शुरू किया गया, ताकि वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन हो सके। हालांकि, विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों ने इसे अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों पर हमला बताया है। यह मामला धार्मिक स्वायत्तता और सरकारी हस्तक्षेप के बीच संतुलन को लेकर महत्वपूर्ण बहस छेड़ सकता है।