नई दिल्ली। नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025 को गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा दायर 24 साल पुराने मानहानि मामले में प्रोबेशन बॉन्ड जमा न करने के कारण हुई। साकेत कोर्ट ने 23 अप्रैल को उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) जारी किया था, जिसके बाद यह कार्रवाई की गई। पाटकर को आज साकेत कोर्ट में पेश किया जाएगा।
यह मामला 2000 में शुरू हुआ, जब सक्सेना, जो उस समय अहमदाबाद स्थित एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे, ने पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित किए। जवाब में, पाटकर ने 25 नवंबर 2000 को “ट्रू फेस ऑफ पैट्रियट” शीर्षक से एक प्रेस नोट जारी किया, जिसमें सक्सेना को “कायर” और “गैर-देशभक्त” कहा और उन पर हवाला लेनदेन में शामिल होने का आरोप लगाया। सक्सेना ने 2001 में अहमदाबाद कोर्ट में मानहानि का मुकदमा दायर किया, जिसे 2003 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली के साकेत कोर्ट में स्थानांतरित किया गया।
जुलाई 2024 में उन्हें हुई थी 5 महीने की सजा
मई 2024 में, मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने पाटकर को आपराधिक मानहानि (आईपीसी धारा 500) के तहत दोषी ठहराया। जुलाई 2024 में, उन्हें पांच महीने की सजा और सक्सेना को 10 लाख रुपये हर्जाना देने का आदेश दिया गया। अप्रैल 2025 में, सत्र न्यायालय ने उनकी सजा को निलंबित कर एक साल की परिवीक्षा दी और हर्जाने को 10 लाख से घटाकर 1 लाख रुपये कर दिया। हालांकि, पाटकर ने प्रोबेशन बॉन्ड और जुर्माना जमा नहीं किया, जिसके चलते वारंट जारी हुआ।
पाटकर के वकील ने दलील दी कि उनकी टिप्पणियां सार्वजनिक हित में थीं, लेकिन कोर्ट ने माना कि ये बयान सक्सेना की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए “जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण” थे। यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानहानि कानूनों के बीच तनाव को उजागर करता है।