नई दिल्ली। दलित और आदिवासी संगठनों ने हाशिए पर मौजूद समुदायों के लिए मजबूत प्रतिनिधित्व और सुरक्षा की मांग को लेकर बुधवार को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया। दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ (एनएसीडीएओआर) ने अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए न्याय और समानता सहित मांगों की एक सूची जारी की है।
एनएसीडीएओआर ने सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों वाली पीठ के हालिया फैसले पर विरोधात्मक रुख अपनाया है, जो उनके अनुसार, ऐतिहासिक इंदिरा साहनी मामले में नौ न्यायाधीशों वाली पीठ के पहले के फैसले को कमजोर करता है, जिसने भारत में आरक्षण के लिए रूपरेखा स्थापित की थी। एनएसीडीएओआर ने सरकार से इस फैसले को खारिज करने का आग्रह किया है। उनका तर्क है कि यह एससी और एसटी के संवैधानिक अधिकारों को खतरे में डालता है।
नए अधिनियम को लागू करने का भी आह्वान
यह संगठन एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण पर संसद के एक नए अधिनियम को लागू करने का भी आह्वान कर रहा है, जिसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करके संरक्षित किया जाएगा। उनका तर्क है कि इससे इन प्रावधानों को न्यायिक हस्तक्षेप से सुरक्षा मिलेगी और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा मिलेगा। एनएसीडीएओआर ने सरकारी सेवाओं में एससी/एसटी/ओबीसी कर्मचारियों का सटीक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए जाति-आधारित डेटा तत्काल जारी करने की भी मांग की है।
बैकलॉग रिक्तियों को भरने का आह्वान
वे उच्च न्यायपालिका में एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणियों से 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व के लक्ष्य के साथ, समाज के सभी वर्गों से न्यायिक अधिकारियों और न्यायाधीशों की भर्ती के लिए एक भारतीय न्यायिक सेवा की स्थापना पर भी जोर दे रहे हैं। संगठन ने केंद्र और राज्य सरकार के विभागों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सभी बैकलॉग रिक्तियों को भरने का आह्वान किया है।
निकाय ने कहा कि सरकारी प्रोत्साहन या निवेश से लाभान्वित होने वाली निजी क्षेत्र की कंपनियों को अपनी फर्मों में सकारात्मक कार्रवाई नीतियां लागू करनी चाहिए। NACDAOR ने दलितों, आदिवासियों और ओबीसी से बुधवार को शांतिपूर्ण आंदोलन में भाग लेने की अपील की है।