कुरुक्षेत्र। हरियाणा के शिक्षा मंत्री महिपाल ढांडा ने कुरुक्षेत्र पहुंचकर उत्तराखंड सरकार के भगवद् गीता को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने के फैसले की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि गीता के महावाक्यों और श्लोकों में जीवन को समृद्ध करने वाली शिक्षाएं हैं। हालांकि, कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया, जिन्हें ढांडा ने “अल्प बुद्धि” करार दिया। उन्होंने कहा कि गीता के श्लोकों को चुनौती देने वाले लोग जीवन के मूल्यों को नहीं समझते।
महिपाल ढांडा ने बताया कि हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्णय लिया था। उस समय तत्कालीन शिक्षा मंत्री रामविलास शर्मा ने विधानसभा में इस प्रस्ताव को मंजूरी दिलाई थी। इसके तहत नैतिक शिक्षा के लिए कक्षा 6-7, 9-10 और 11-12 के लिए अलग-अलग किताबें तैयार की गईं। इन किताबों में बच्चों की उम्र और समझ के अनुसार गीता के श्लोकों को शामिल किया गया। न केवल गीता, बल्कि रामायण और अन्य धार्मिक ग्रंथों के प्रेरक प्रसंगों को भी पाठ्यक्रम में जोड़ा गया, ताकि बच्चे संस्कारों से युक्त होकर देश की प्रगति में योगदान दें।
ज्ञान की राहें कभी बंद नहीं होतीं: महिपाल ढांडा
शिक्षा मंत्री ने जोर देकर कहा कि ज्ञान की राहें कभी बंद नहीं होतीं। उन्होंने कहा, “ज्ञान व्यापक है। हमारे देश में इतनी स्वतंत्रता है कि गीता हो या कोई अन्य धार्मिक ग्रंथ, व्यक्ति जितना चाहे उतना खोज कर सकता है और अपने आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध बना सकता है।” ढांडा ने बच्चों को नैतिक शिक्षा देने पर जोर देते हुए कहा कि यह उन्हें जीवन में सही रास्ता चुनने और समाज की उन्नति में सहयोगी बनने के लिए प्रेरित करेगा।
इस बयान ने गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करने के मुद्दे पर नई चर्चा छेड़ दी है। विरोधियों का कहना है कि यह धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा दे सकता है, जबकि समर्थक इसे सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को बढ़ाने वाला कदम मानते हैं।