नई दिल्ली। 14 मई को जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ग्रहण की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में उन्हें हिंदी में शपथ दिलाई। जस्टिस गवई, जो दलित समुदाय से हैं, देश के पहले बौद्ध और दूसरे दलित CJI हैं, जिनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक छह महीने और नौ दिन का होगा।
जस्टिस गवई का यह पदग्रहण ऐतिहासिक है, क्योंकि वे संवैधानिक मूल्यों और समावेशिता के प्रतीक हैं। उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में 2003 से 2019 तक सेवा दी और 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट के जज बने। उन्होंने अनुच्छेद 370 की समाप्ति और मनीष सिसोदिया को जमानत जैसे महत्वपूर्ण फैसलों में हिस्सा लिया। उनकी प्राथमिकताओं में मामले के बैकलॉग को कम करना, न्यायिक रिक्तियों को भरना और अधिक महिला जजों की नियुक्ति शामिल है।
जस्टिस गवई ने रिटायरमेंट के बाद कोई राजनीतिक पद नहीं करेंगे स्वीकार
जस्टिस गवई ने संविधान की सर्वोच्चता पर जोर देते हुए कहा कि वे रिटायरमेंट के बाद कोई राजनीतिक पद स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले पर सुप्रीम कोर्ट की एकजुटता का नेतृत्व किया और वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर सुनवाई की शुरुआत करेंगे।
जस्टिस नागरत्ना 24 नवंबर को बनेंगी पहली महिला सीजेआई
जस्टिस गवई के बाद, जस्टिस बीवी नागरत्ना 24 नवंबर 2025 से भारत की पहली महिला CJI बनेंगी, लेकिन उनका कार्यकाल केवल 36 दिन का होगा। यह संक्षिप्त कार्यकाल सुप्रीम कोर्ट में लैंगिक समानता की दिशा में एक मील का पत्थर होगा, हालांकि उनकी नियुक्ति को लेकर कार्यकाल की अवधि पर चर्चा हो रही है।
जस्टिस गवई के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट से सामाजिक न्याय और पारदर्शिता की उम्मीद की जा रही है। उनकी नियुक्ति को सामाजिक विविधता को बढ़ावा देने वाला कदम माना जा रहा है।