नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने 30 अप्रैल को राष्ट्रीय जनगणना में जातिगत गणना को शामिल करने का ऐतिहासिक फैसला लिया, जिसे विपक्षी नेता राहुल गांधी की लंबे समय से चली आ रही मांग की जीत के रूप में देखा जा रहा है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स की बैठक के बाद इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि यह कदम सामाजिक और आर्थिक सशक्तीकरण के लिए पारदर्शी तरीके से लागू होगा। यह 1931 के बाद पहली बार है जब राष्ट्रीय जनगणना में सभी जातियों का डेटा एकत्र किया जाएगा।
राहुल गांधी ने इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम बताया। उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना देश की 90% आबादी, विशेषकर दलित, आदिवासी, और पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा से जोड़ेगी। गांधी ने अपनी ‘जितनी आबादी, उतना हक’ की नीति पर जोर देते हुए कहा कि यह डेटा आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं के समान वितरण में मदद करेगा। उन्होंने यह भी दावा किया कि कांग्रेस की दबाव की रणनीति ने सरकार को यह फैसला लेने के लिए मजबूर किया।
कांग्रेस ने हमेशा जाति जनगणना का किया विरोध: अश्विनी वैष्णव
वैष्णव ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि उसने हमेशा जाति जनगणना का विरोध किया और 2010 में मनमोहन सिंह सरकार ने केवल सर्वे किया, न कि पूर्ण गणना। उन्होंने इंडिया गठबंधन पर भी इसे राजनीतिक हथियार बनाने का आरोप लगाया। गृह मंत्री अमित शाह ने इसे सामाजिक समानता की दिशा में एक कदम बताया।
कई राज्यों में जातिगत जनगणा कराई गई थी
यह फैसला बिहार, कर्नाटक, और तेलंगाना जैसे राज्यों के जाति सर्वेक्षणों के बाद आया है, जिनमें बिहार ने 63% OBC आबादी का खुलासा किया था। विशेषज्ञों का मानना है कि यह डेटा नीति निर्माण में मदद करेगा, लेकिन कुछ आलोचक इसे जातिवाद को बढ़ावा देने वाला मानते हैं। जनगणना, जो कोविड के कारण 2020 से स्थगित थी, 2026 में शुरू होगी।