मुंबई। मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। इनमें पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित शामिल हैं। विशेष जज एके लाहोटी ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में विफल रहा और केवल संदेह के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती।
29 सितंबर, 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में भिखु चौक के पास एक मोटरसाइकिल पर रखे गए विस्फोटक उपकरण से हुए धमाके में छह लोग मारे गए थे और 95 लोग घायल हुए थे। इस मोटरसाइकिल का पंजीकरण प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम होने का दावा किया गया था, लेकिन अदालत ने कहा कि इसके स्वामित्व का कोई ठोस सबूत नहीं है। साथ ही, यह साबित नहीं हुआ कि बम उसी मोटरसाइकिल में रखा गया था।
सबूतों के साथ छेड़छाड़ की आशंका जताई गई
अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि कर्नल पुरोहित ने कश्मीर से आरडीएक्स लाकर इसे सुधाकर चतुर्वेदी के घर में रखा और बम बनाया गया। हालांकि, अदालत ने कहा कि इस दावे का कोई विश्वसनीय सबूत नहीं है। जांच के दौरान अपराध स्थल को ठीक से सुरक्षित न करने के कारण सबूतों के साथ छेड़छाड़ की आशंका जताई गई।
2011 में एनआईए को सौंप दिया गया
मामले की जांच पहले महाराष्ट्र एटीएस ने की थी, जिसे 2011 में एनआईए को सौंप दिया गया। कुल 323 गवाहों की जांच की गई, जिनमें से 37 गवाह मुकर गए और 26 की मृत्यु हो गई। बचाव पक्ष ने सबूतों के अभाव और जांच में अनियमितताओं का हवाला दिया।
अदालत ने मृतकों के परिजनों को 2 लाख रुपये और घायलों को 50,000 रुपये मुआवजे का आदेश दिया। इस फैसले ने लंबे समय से चले आ रहे इस हाई-प्रोफाइल मामले को समाप्त कर दिया, जिसने कई विवादों को जन्म दिया था।