नई दिल्ली। बिहार सरकार को बड़ा झटका देते हुए पटना उच्च न्यायालय ने गुरुवार को पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण को 50 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने के अपने फैसले को रद्द कर दिया। जाति-आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट के बाद नीतीश कुमार सरकार ने पिछले साल नवंबर में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में वंचित वर्गों के लिए कोटा बढ़ा दिया था।
मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन की अगुवाई वाली खंडपीठ ने 2023 में बिहार विधानसभा द्वारा पारित संशोधनों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे संविधान की शक्तियों से परे हैं और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत समानता खंड का उल्लंघन करते हैं। पीठ पिछड़े वर्गों को 65 प्रतिशत आरक्षण देने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। याचिका गौरव कुमार व अन्य ने दायर की थी।
राजद नेता मनोज झा फैसले को बताया दुर्भाग्यपूर्ण
राजद नेता मनोज झा ने पटना हाई कोर्ट के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा, “मैं कहना चाहूंगा कि हमें याचिकाकर्ता की सामाजिक पृष्ठभूमि देखनी चाहिए। वे कौन लोग हैं जो पर्दे के पीछे से ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं? इस फैसले को तुरंत ऊपरी अदालत में चुनौती देने के लिए हम नीतीश कुमार से आग्रह करेंगे।” इससे पहले नवंबर 2023 में बिहार विधानसभा ने आरक्षण संशोधन विधेयक पारित किया था। यह विधेयक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदगी के बिना राज्य विधानसभा में पारित किया गया।
कुल आरक्षण 75 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया था
संशोधित आरक्षण कोटा में अनुसूचित जाति के लिए 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए 2 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए 43 प्रतिशत शामिल है। ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत कोटा के साथ बिल के अनुसार, राज्य में कुल आरक्षण 75 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया था, जो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा से कहीं अधिक था। फैसले में ओपन मेरिट श्रेणी से आने वालों के लिए जगह 25 प्रतिशत तक सीमित कर दी गई।