मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू, आखिर बीजेपी अपना मुख्यमंत्री क्यों नहीं चुन सकी? जानें कारण

नई दिल्ली। मणिपुर में जारी राजनीतिक अस्थिरता के बीच मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे के चार दिन बाद केंद्र सरकार ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया है। गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राज्यपाल की रिपोर्ट और मौजूदा परिस्थितियों के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत यह निर्णय लिया है।

मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने 9 फरवरी 2025 को अपने पद से इस्तीफा दिया था। उनके इस्तीफे के बाद, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्वोत्तर प्रभारी संबित पात्रा ने विधायकों और राज्यपाल अजय कुमार भल्ला के साथ कई दौर की बैठकें कीं, लेकिन नए मुख्यमंत्री के चयन पर सहमति नहीं बन पाई। पार्टी के भीतर मतभेद और विभिन्न गुटों के बीच असहमति के कारण नेतृत्व का चयन संभव नहीं हो सका।

मैतेई और कुकी के बीच हिंसा में 250 से अधिक लोग मरे

मणिपुर में मई 2023 से मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा जारी है, जिसमें अब तक 250 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और हजारों लोग विस्थापित हुए हैं। इस हिंसा के दौरान मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं, और पार्टी के भीतर भी उनके नेतृत्व को लेकर असंतोष बढ़ता गया। कई विधायकों ने केंद्रीय नेतृत्व से मिलकर अपनी चिंताओं को व्यक्त किया था।

प्रशासनिक शक्तियां अब राज्यपाल के अधीन

राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद, राज्य की प्रशासनिक शक्तियां अब राज्यपाल के अधीन होंगी, जो केंद्र सरकार के निर्देशानुसार कार्य करेंगे। विधानसभा को निलंबित कर दिया गया है, लेकिन भंग नहीं किया गया है, जिससे भविष्य में राजनीतिक स्थिरता बहाल होने पर सदन को पुनः सक्रिय किया जा सकता है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू होने पर भाजपा की आलोचना करते हुए कहा कि यह पार्टी की शासन करने में असमर्थता की स्वीकारोक्ति है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राज्य का दौरा करने और शांति बहाल करने की योजना प्रस्तुत करने की मांग की।

शांति और स्थिरता बहाल करना बड़ी चुनौती

भाजपा के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती राज्य में शांति और स्थिरता बहाल करना है। पार्टी को आंतरिक मतभेदों को सुलझाकर नए नेतृत्व का चयन करना होगा, ताकि मणिपुर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पुनः स्थापित किया जा सके। विशेषज्ञों का मानना है कि राष्ट्रपति शासन के दौरान पार्टी के पास आत्ममंथन का अवसर है, जिससे वह राज्य में अपनी स्थिति को मजबूत कर सके।

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