नई दिल्ली। होली, भारत का एक प्रमुख और उल्लासपूर्ण त्योहार है, जिसे हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत, प्रेम, सौहार्द और रंगों के संगम के रूप में देखा जाता है। हिंदू परंपराओं में इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गहराई है, जिससे यह सिर्फ एक त्योहार ही नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने का एक माध्यम भी बन गया है।
होली का मूल धार्मिक महत्व हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद और होलिका की कथा से जुड़ा है। मान्यता है कि असुरराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति छोड़ने के लिए कई यातनाएँ दीं। जब वह असफल रहा, तो उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे, क्योंकि होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जलकर भस्म हो गई। इस घटना की याद में होली के एक दिन पहले ‘होलिका दहन’ किया जाता है, जो बुराई के अंत और सत्य की विजय का प्रतीक है।
रंगों का महत्व
होली के दिन रंग खेलने की परंपरा श्रीकृष्ण और राधा की लीलाओं से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि कृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ रंगों से होली खेली थी, जिससे यह परंपरा शुरू हुई। धीरे-धीरे यह पूरे भारत में प्रेम और भाईचारे के संदेश के रूप में फैल गई। रंगों का यह खेल जाति, धर्म, वर्ग और सामाजिक भेदभाव को मिटाने का प्रतीक बन गया है।
समाज में होली का प्रभाव
होली सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व लोगों के बीच आपसी प्रेम और सौहार्द बढ़ाने का अवसर देता है। इस दिन दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं और सभी गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं।
होली केवल रंगों का उत्सव नहीं, बल्कि खुशियों को बांटने और समाज को जोड़ने का माध्यम भी है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि जीवन में सकारात्मकता और प्रेम के रंग भरना जरूरी है। आज भी लोग इस परंपरा को जीवंत रखते हुए होली को उल्लास के साथ मनाते हैं, जिससे यह त्योहार हर साल नए रंगों में खिलता है।