नई दिल्ली। होलिका दहन का पर्व प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, जो इस वर्ष 13 मार्च 2025 को पड़ रहा है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है, जिसमें होलिका दहन के माध्यम से नकारात्मक ऊर्जा का नाश किया जाता है। हालांकि, इस वर्ष होलिका दहन के समय भद्रा काल का साया है, जो शुभ कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है।
पूर्णिमा तिथि और भद्रा काल
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा तिथि 13 मार्च को प्रातः 10:35 बजे से प्रारंभ होकर 14 मार्च को दोपहर 12:23 बजे तक रहेगी। इस अवधि में, 13 मार्च को पूरे दिन भद्रा काल रहेगा, जो रात्रि 11:26 बजे समाप्त होगा। भद्रा काल में शुभ कार्य वर्जित होते हैं, इसलिए होलिका दहन के लिए भद्रा समाप्ति के बाद का समय ही उपयुक्त माना गया है।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
भद्रा काल की समाप्ति के पश्चात, होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 13 मार्च की रात्रि 11:26 बजे से 12:30 बजे तक रहेगा। यह अवधि 1 घंटा 4 मिनट की है, जिसमें होलिका दहन करना शुभफलदायी होगा।
होलिका दहन की पूजा विधि
1. स्थान की शुद्धि: होलिका दहन के लिए चयनित स्थान को साफ करें और गंगाजल का छिड़काव करके पवित्र करें।
2. होलिका स्थापना: स्थान पर लकड़ियों, उपलों और अन्य दहन सामग्री से होलिका का निर्माण करें।
3. पूजन सामग्री: रोली, अक्षत, फूल, नारियल, गुड़, कच्चा सूत, हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, और नई फसल की बालियां (जौ, गेहूं) एकत्रित करें।
4. पूजा प्रक्रिया:
– शुभ मुहूर्त में होलिका के समीप परिवार सहित उपस्थित हों।
– होलिका को रोली, अक्षत, फूल आदि अर्पित करें।
– कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर तीन या सात बार लपेटें।
– नारियल होलिका को अर्पित करें।
– नई फसल की बालियों को अग्नि में समर्पित करें।
5. परिक्रमा और प्रार्थना: होलिका की तीन या सात परिक्रमा करते हुए प्रह्लाद और होलिका की कथा का स्मरण करें एवं परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करें।
होलिका दहन का महत्व:
होलिका दहन से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार, भक्त प्रह्लाद की भक्ति से क्रोधित होकर, उसके पिता हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से प्रह्लाद को अग्नि में भस्म करने का आदेश दिया। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी, लेकिन प्रह्लाद की अटूट भक्ति के कारण होलिका स्वयं जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित रहे। यह कथा दर्शाती है कि सत्य और भक्ति की शक्ति के सामने कोई भी बुराई टिक नहीं सकती।
सावधानियां:
– भद्रा काल में होलिका दहन से बचें, क्योंकि यह अशुभ माना जाता है।
– दहन स्थल पर सुरक्षा के प्रबंध सुनिश्चित करें।
– पर्यावरण की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए, प्रदूषण रहित सामग्री का उपयोग करें।
इस प्रकार, भद्रा काल के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, शुभ मुहूर्त में होलिका दहन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। सभी धार्मिक विधियों का पालन करते हुए होलिका दहन करने से परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।