नई दिल्ली। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लेकर तमिलनाडु में एक गहरा भाषाई विवाद उभर कर सामने आया है। यह विवाद मुख्यतः त्रिभाषा फॉर्मूला के कारण है, जिसे राज्य सरकार हिंदी थोपने का प्रयास मानती है।
त्रिभाषा फॉर्मूला और तमिलनाडु की आपत्ति
एनईपी 2020 के तहत त्रिभाषा फॉर्मूला प्रस्तावित है, जिसमें छात्रों को तीन भाषाएं सीखने की बात कही गई है: मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा, हिंदी या अंग्रेजी, और एक अन्य आधुनिक भारतीय भाषा। तमिलनाडु में 1968 से द्विभाषा नीति लागू है, जिसमें तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती हैं। राज्य सरकार का मानना है कि त्रिभाषा फॉर्मूला हिंदी को अनिवार्य बनाने का प्रयास है, जो राज्य की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान के खिलाफ है।
वित्तीय विवाद
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार ने समग्र शिक्षा योजना के तहत 2,152 करोड़ रुपये की राशि रोक दी है, क्योंकि राज्य ने एनईपी 2020 को लागू नहीं किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस राशि को जारी करने की मांग की है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
डीएमके और अन्य क्षेत्रीय दल हिंदी को उत्तर भारतीय वर्चस्व का प्रतीक मानते हैं और इसे थोपने का विरोध करते हैं। कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है, जबकि उसके कुछ नेता त्रिभाषा फॉर्मूला का विरोध कर रहे हैं।
केंद्रीय सरकार का पक्ष
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने स्पष्ट किया है कि एनईपी 2020 का उद्देश्य हिंदी को थोपना नहीं है, बल्कि मातृभाषा को बढ़ावा देना है। उन्होंने यह भी कहा कि तमिलनाडु को समग्र शिक्षा मिशन के लिए 2,400 करोड़ रुपये मिलेंगे, लेकिन यह राशि तब तक जारी नहीं की जाएगी जब तक राज्य एनईपी को पूरी तरह से अपनाता नहीं है।
इतिहास में हिंदी विरोध
तमिलनाडु में हिंदी विरोध का इतिहास पुराना है। 1937 में ब्रिटिश शासन के दौरान मद्रास प्रेसिडेंसी में हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य करने की कोशिश हुई थी, जिसका विरोध हुआ था। 1965 में भी हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के प्रयास का विरोध हुआ था। इस पृष्ठभूमि में, त्रिभाषा फॉर्मूला को हिंदी थोपने का प्रयास माना जा रहा है।
वर्तमान स्थिति
तमिलनाडु सरकार एनईपी 2020 को लागू करने से इनकार कर रही है और द्विभाषा नीति को जारी रखने पर जोर दे रही है। केंद्र और राज्य सरकार के बीच इस मुद्दे पर तनाव बना हुआ है, और वित्तीय सहायता को लेकर भी विवाद जारी है।
इस प्रकार, एनईपी 2020 तमिलनाडु में भाषाई लड़ाई का केंद्र बन गया है, जिसमें राज्य की सांस्कृतिक पहचान, भाषा नीति, और शिक्षा प्रणाली के मुद्दे शामिल हैं।