नई दिल्ली। 13 जनवरी से शुरू होने वाला महाकुंभ मेला न केवल दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है, बल्कि आध्यात्मिकता, पौराणिक कथाओं और विज्ञान का एक आकर्षक संगम भी है।
हर चार साल में तीन पवित्र स्थानों- हरिद्वार, उज्जैन और नासिक और हर 12 साल में प्रयागराज में आयोजित होने वाला यह त्योहार लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। उनका मानना है कि इस अवधि के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है।
आध्यात्मिक से परे, इसके आयोजन के समय को लेकर खगोलीय घटनाओं से संबंध है। यह बृहस्पति ग्रह और उसकी कक्षा से जुड़ा हुआ है। महाकुंभ मेले की उत्पत्ति प्राचीन हिंदू कथा समुद्र मंथन या ब्रह्मांडीय महासागर के मंथन से हुई है।
समुद्र मंथन से जुड़ा है पौराणिक महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवताओं और राक्षसों ने मिलकर अमृत यानी अमरता का अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। कहा जाता है कि इस प्रक्रिया के दौरान, दिव्य अमृत की बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरीं, जो कुंभ मेले का स्थल बन गईं। शब्द कुंभ का अर्थ है ‘बर्तन।’ जो इस अमृत को रखने वाले कंटेनर का प्रतीक है। यह आयोजन को दिव्य और आध्यात्मिक पोषण से जोड़ता है।
विज्ञान क्या कहता है?
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, कुंभ मेला खगोल विज्ञान की उन्नत समझ और मानव जीव विज्ञान पर इसके प्रभाव को दर्शाता है। रिसर्च में कहा गया है कि ग्रहों का संरेखण पृथ्वी के विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है, जो बदले में जैविक प्रणालियों को प्रभावित करता है।
जैव-चुंबकत्व के अध्ययन से पता चलता है कि मानव शरीर विद्युत चुम्बकीय बलों का उत्सर्जन करते हैं और अपने वातावरण में आवेशित क्षेत्रों पर प्रतिक्रिया करते हैं। यह घटना यह बताती है कि क्यों कई श्रद्धालु उत्सव के दौरान शांति और कल्याण की भावनाओं से डुबकी लगाते हैं।